तीन तलाक पर महिला हित में न्याय की ऐतिहासिक जीतः विशेष आलेख

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सर्दी हो या गर्मी एक गहरे काले रंग के बुर्खें में रहनी वाली, सिर्फ चार दिवारी के भीतर समाज से अलग-थलग महिला। जैसा उसका शौहर चाहेगा वो वैसा ही करेगी। बेगम होकर सारे गमों को भीतर समेटे हुए। बच्चों की परवरिस में जीवन न्यौछावर कर देने वाली। बुराई के खिलाफ पति को आंख दिखाना तो जैसे धर्म की तौहिन करना है। निकाह के वक्त जब काजी निकाहनामा पढ़ रहा था,


सिर्फ चंद लब्ज ही उससे पूछे गए, कबूल है-क्या कबूल है-कबूल है उसके अलावा सभी की एक ही मांग बेटी सायराबानों कबूल करों। सबके दबाव और समाजिक लोक-लाज को दिल में निचोड़ते हुए निर्णय को सुखाकर भारी बोझ जैसे दफन कर लिया हो। फिर क्या दिल पर पत्थर रखते हुए वो बोल पड़ी कबूल है।
ऐसा कहते ही, मानों उसने सबकी सोच और चाहत में जान फूंक दी हो। मगर किसी ने ये नहीं सोचा उसकी खुद की रजामंदी क्या है। काफी जिल्लत और दुश्वारियों को बर्दाश करने के बाद आज उसे कोर्ट से जीत नसीब हुई है। न जाने कितनी मुस्लिम बेटियों ने अपने भविष्य का सुखद अहसाह किया होगा। तीन तलाक और हलाला जैसी कुरीतियों के खिलाफ वो आज तक मुंह बंद करके चुप बैठी थी।

उसको सिर्फ भोग की वस्तु समझकर उपभोग किया जा रहा था। तलाक के बाद वापसी पर उससे पहले हलाला कितने घृणित माहौल से उसे गुजरना पड़ा इस पर किसी ने पहले कभी चिंता जाहिर नहीं की। चिंगारी भी सुलगने लगी, जब मुस्लिम बेटी ही खुलकर सामने आई। करीब 36 साल पहले भी इसी तरह का मामला सामने आया था। इस पर महिला मामलों की जानकारों ने काफी हितेषी बहस की, मगर कट्टरपंथियों के आगे उनकी एक न चल सकी। तब सायबानों मुस्लिम महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ बोल पड़ी थी, मगर उसको शायद कोर्ट का भी इतना मजबूत समर्थन न मिल सका था।

साल-2016 में मामलें ने फिर से तूल पकड़ा इस बार सायबानों नहीं बल्कि सायराबानों थी। जिसने इस कट्टरपंथी नियम को महिलाओं का अपमान और शोषण बताया। आज कोर्ट का फैसला आने के बाद महिलाओं को एक अलग तरह की आजादी मिल सकेगी। उन्हें आज महसूस होगा वो स्वतंत्र भारत की स्वतंत्र नागरिक है, वो खुलकर घूम सकती है, समाज में अपने हित की बात बेबाकी से रख सकती है। अब उन्हें घुटन और चारदिवारी में सौहर के लिए नजरबंद होने की कतई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि तीन तलाक अब सिर्फ इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया है। पकिस्तान सहित 21 देश तीन तालक को खत्म कर चुके हैं, ऐसे में तीन तलाक पर बहस करना धर्म और देश की तौहिन करने जैसा है। देश और न्यायपालिका से बढ़कर कुछ नहीं होना चाहिए। सायराबानों ये जीत सिर्फ तुम्हारी ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष की है। दुनिया में कोई भी धर्म क्यों न हो महिलाओं को सम्मान देना ही प्राथमिकता है।

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