भ्रष्टाचारी दून रेलवे की करतूत कुछ यूं आई सामने

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देहरादून। ब्योरों। रेलवे विभाग में लापरवाही के चलते हर साल सैकड़ों लोग जान गवांते हैं। दून रेलवे विभाग भी इससें अछूता नहीं है। यहां भ्रष्टाचार किस हद तक फैला है। ये आप खुद ही जान सकते हैं, करीब तीन साल पहले दून रेलवे के अधिकारी सुनील बलूनी को जबरन घूस लेने के आरोप में फंसाया गया। एक ईमानदार आॅफिसर वर्दी पर दाग कैसे बर्दास कर सकता था। उनहोंने आत्महत्या करना ही उचित समझा।

मगर इसके पीछे किन लोगों का हाथ रहा, ये जानना विभाग सहित सभी के लिए जरूरी हो जाता है। आईये दून रेलवे विभाग की कुछ और करतूतों से उत्तराखंड रिपोर्ट आपकों रूबरू करायेगा। साथ ही प्रत्यक्ष हो रहे भ्रष्टाचार की आपकों परत-दर-परत गहनता से जानकारी भी दी जाएगी। रेलवे में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर हमारे संवाददाता का अनुभव कैसा रहा पेश है खास रिपोर्ट।

यदि आप दून रेलवे स्टेशन पर देर रात किसी ट्रेन में सवार होने आए हैं, तो ध्यान रखिये आपकों पहले आॅनलाइन टिकट की बुेिकंग करा लेनी चाहिए। क्योंकि टिकट विंडो आपकों खाली मिलेंगी या बंद हो चुकी होगी। अगर कोई मिलेगा तो संबंधित ट्रेन में सवार होने वाला टीटी जो आपकों सीट पुख्ता करवाने के बदले टिकट की कीमत दोगुने से ज्यादा लेगा। खास बात ये है कि ये अधिकारी आपकों टिकट भी नहीं देगा। क्योंकि सच ये है कि रेलवे विभाग इन भ्रष्ट अधिकारियों के दम पर ही तो चल रहा है। जो आपके टिकट और अलग से ली गई रकम का हिस्सा ऊपर बैठे भ्रष्टों तक पहुंचायेगा। साथ ही आपकों सीट की गारंटी भी देगा। जिस सीट के लिए आपकों सिर्फ महज 180 रूपयें देने हो वहां आपसे पांच सौं से अधिक रूपयें लिए जाएंगे।

इतना ही नहीं, माल गाड़ियों में अवैध तरीके से माल चढ़ाया जाता है। जिनका भाड़ा अधिकारियों की जेब मेें जाता हैं, इसका सीधा असर विभागीय राज्सव पर पड़ता है। माला गाड़ी से आने वाले माल में भी जमकर हेराफेरा होती है। यदि आपकों बात झूठी लगती है, तो आप एक दिन खुद ही देर रात रेलवे स्टेशन पहुंच जाए। सारा सच आंखों के सामने होगा। जनता की गाडी कमाई को डकारने वाले रेलवे अधिकारी व कर्मचारियों की लापरवाही के चलते ही देश में हर साल रेल हादसे बढ़ रहे हैं। जिन पर अंकुश लगाने से पहले विभाग में बढ़ते भ्रष्टाचार की कमर तोड़ना जरूरी है। क्योंकि जो लोग गंदी मोटी कमाई के आदि हो चुके हैं, उन्हें ये फर्क नहीं पड़ता कि उनकी कामचोरी और भ्रष्टनीति से कितने लोगों की जान जा रही है, या कितने लोगों की जेब ढ़ीली पड़ रही है।

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