गांव से तीन गुना एनजीओं की संख्या फिर भी सूबें की हालत खस्ताहाल

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देहरादून। संवाददाता। समाज सेवा के नाम पर उत्तराखंड में करीब साढ़े 16 हजार से भी ज्यादा एनजीओं कार्यरत हैं। मगर इसके बावजूद भी सूबें की हालत जस की तस बनी हुई है। बता दे कि 16674 गांव और गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) की संख्या 51675। आंकड़ा चैंकाने वाला है, मगर सच्चाई ये है कि इन एनजीओं का काम अपना उल्लू सीधा करना है। यानी एक गांव पर औसतन तीन से अधिक एनजीओं और इनमें भी 60 फीसद से अधिक का कार्यक्षेत्र ग्रामीण विकास पर केंद्रित। इस लिहाज से देखें तो अब तक प्रत्येक गांव की तस्वीर बदल जानी चाहिए थी, मगर हकीकत किसी से छिपी नहीं है। खासकर पहाड़ के गांवों से न तो पलायन थमा और न सुविधाओं का विस्तार ही हो पाया। इस सबको देखते हुए शासन अब एनजीओ की कुंडली बांचने पर गंभीरता से विचार कर रहा है।

प्रदेश में आई एनजीओ की बाढ़ ने आज एक उद्योग का आकार ले लिया है। केंद्र से लेकर राज्य सरकारें तक इन्हें खूब बजट दे रही हैं। ग्राम्य विकास, पर्यावरण, महिला उत्थान, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वरोजगार, स्थानीय संसाधनों का बेहतर उपयोग समेत तमाम अहम मसलों पर जो कार्य सरकारी महकमे कर सकते थे, वे इन्हें इस मंशा से दिए जा रहे कि कुछ रिजल्ट सामने आएगा। इस कसौटी पर परखा जाए तो उंगलियों में गिनने लायक एनजीओ ही खरे उतरते हैं।

सूरतेहाल ने सभी को सोचने पर विवश कर दिया है। औसतन तीन एनजीओ यदि एक गांव पर फोकस करते तो गांवों की दशा कब की बदल चुकी होती। खैर, सरकार और शासन के कानों तक भी आवाज पहुंची है तो एनजीओ को कसौटी पर परखा जाएगा। इसके लिए शासन में मंथन शुरू हो गया है। देखने वाली बात होगी कि यह मुहिम कब तक परवान चढ़ती है और इसके क्या नतीजे सामने आते हैं।

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