थलनदी गेंद मेले का अपना अलग है महत्व

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यमकेश्वर। संवाददाता। मकर संक्रांति पर थलनदी में ‘गेंदी कौथिग’ मेला शुरू हो गया। दो दिनों तक चलने वाले इस मेले में विभिन्न स्कूलों की खेल प्रतियोगिताओं के साथ ही विजेताओं का सम्मान किया जाएगा। ऐतिहासिक गेंद संघर्ष अजमेर और उदयपुर पट्टी के बीच शुरू हो चुका है, जिसमें दोनों पट्टियों से जुड़े लोग अपने पाले में गेंद छीनने का प्रयास कर रहे हैं। इधर मेले में पहले ही दिन लोगों एक दूसरे से मिलकर मकर संक्रांति की बधाई दी। खाने पीने के स्टाल के साथ ही लोगों ने मेले में जमकर खरीदारी की

क्या है गिंदी कौथिग ?
20 किलोग्राम की गेंद को छीनने का रोमांच है गिंदी कौथिग। इस गेंद मेले का कोटद्वार से लेकर डाडामंडी और यमकेश्वर ब्लाक के थलनदी में बड़ा महत्व है। यह मेला कई जगह पर आयोजित किया जाता है, लेकिन इस मेले की शुरुआत थलनदी से ही मानी गई है। वर्तमान में कोटद्वार के मवाकोट, द्वारीखाल ब्लाक के डाडामंडी आदि स्थानों पर गिंदी मेला आयोजित किया जाता है। शहर के नजदीक होने के चलते भले ही मवाकोट का यह कौथिग अधिक आकर्षक हो सकता है लेकिन मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार आज भी थलनदी का कौथिग अधिक प्रसिद्ध है।

कौथिग का ऐतिहासिक महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार यमकेश्वर ब्लाक के अजमीर पट्टी के नाली गांव के जमींदार की गिदोरी नाम की लड़की का विवाह उदयपुर पट्टी के कस्याली गांव में हुआ था। पारिवारिक विवाद होने पर गिदोरी घर छोड़कर थलनदी पर आ गई। उस समय यहां पर दोनों पट्टियों के गांव (नाली और कस्याली) के लोग खेती कर रहे थे। नाली गांव के लोगों को जब यह पता चला कि कि गिदोरी ससुराल छोड़कर आ रही है तो वे उसे अपने साथ ले जाने लगे जबकि कस्याली गांव के लोग उसे वापस ससुराल ले जाने का प्रयास करने लगे। दोनों गांव के लोगों के बीच संघर्ष और छीना झपटी में गिदोरी की मौत हो गई। तब से थलनदी में दोनों पट्टियों में गेंद के लिए संघर्ष होता है।

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