पहाड़, पलायन, रोजगार का रोना रोने वाले कोठेरा की शांति से सीखें; रोजगार कैसे पैदा होते हैं?

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शांति आज न केवल दो वक्त की रोटी चैन से प्राप्त कर रही है, बल्कि सपना भी देखने लगी है कि, वह अपनी इकलौती बेटी को अच्छी शिक्षा दे, उच्च पद पर पहुंचाएगी. शांति ने यह सब किया है दुग्ध उत्पादन से. शांति के प्रयासों में सम्मिलित हो, आस-पास की महिलाओं ने भी दुग्ध उत्पादन कर खुद को आत्मनिर्भर बना लिया है. कोठेरा की शांति और अन्य महिलाओं का यह प्रयास तथाकथित श्वेत क्रान्ति है या नहीं तो नहीं पता परन्तु उनका प्रयास उनके अभावग्रस्त जीवन में आई बड़ी क्रांति का द्योतक जरुर कहा जा सकता है.  

गंगोलीहाट (पिथोरागढ़) : पहाड़ से पलायन और पहाड़ में रोजगार के साधनों के अभाव का रोना रोने वाले गंगोलीहाट के कोठेरा गांव की शांति कोठारी के चरणों में बैठ कर कुछ सीख ले लें तो अच्छा रहेगा. शांति अपनी मेहनत और बुद्धीमत्ता से स्वयं तो सफल हुई ही है उन्होंने आस-पास के गांवों की 150 महिलाओं को भी आर्थिक मजबूती दी है.

शांति आज न केवल दो वक्त की रोटी चैन से प्राप्त कर रही है, बल्कि सपना भी देखने लगी है कि, वह अपनी इकलौती बेटी को अच्छी शिक्षा दे, उच्च पद पर पहुंचाएगी. शांति ने यह सब किया है दुग्ध उत्पादन से. शांति के प्रयासों में सम्मिलित हो, आस-पास की महिलाओं ने भी दुग्ध उत्पादन कर खुद को आत्मनिर्भर बना लिया है. कोठेरा की शांति और अन्य महिलाओं का यह प्रयास तथाकथित श्वेत क्रान्ति है या नहीं तो नहीं पता परन्तु उनका प्रयास उनके अभावग्रस्त जीवन में आई बड़ी क्रांति का द्योतक जरुर कहा जा सकता है.

गंगोलीहाट तहसील मुख्यालय से छह किमी दूर पर स्थित है एक गांव कोठेरा.  इस गांव की शांति कोठारी ने लंबे समय तक गरीबी का अभिशाप झेला.  पति-पत्नी खेती में जुटे रहते परंतु पहाड़ों की छोटी जोत की खेती से परिवार का पालन संभव नहीं हो पाता.  इसी बीच गंगोलीहाट की एचजीवीएस संस्था ने महिला समूह बनाए और महिलाओं को दुग्ध उत्पादन कर आत्मनिर्भर बनने को प्रेरित किया.  महिला समूह से जुड़ी शांति कोठारी ने इसका बीड़ा उठाया.  40 वर्षीय शांति ने खुद गाय पालकर दूध उत्पादन शुरू किया.  घर, परिवार के कार्यो को निपटाने के बाद वे महिलाओं को दुग्ध उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करती रहीं.  उनका यह प्रयास रंग लाने लगा. घर-घर जाकर दूध संग्रह करने लगीं.  दुग्ध उत्पादन बढ़ने के साथ संस्था ने कामधेनु सहकारी समिति बनाई.  शांति के इस प्रयास से इस क्षेत्र में छह महिला समूह बनाकर 150 परिवारों को दुग्ध उत्पादन से जोड़ दिया.  कामधेनु सहकारी समिति की कोषाध्यक्ष बन गई.  गांव में भोजना माता भी उन्हें ही बना दिया.  सुबह दूध का संग्रह, उसके बाद एजेंसी की चाय बेचना और फिर विद्यालय में बच्चों के लिए भोजन बनाने के कार्यों का विगत 6-7 वर्षो से नियमित निर्वहन कर रही हैं.  उनकी इस पहल से कोठेरा और फुटसिल गांवों की महिलाओं को आज प्रतिमाह दो लाख रुपये की आय हो रही है.  दोनों गांवों में 25 डेयरी कार्य कर रही हैं.

शांति की एक ही बेटी है, जो हाईस्कूल में पढ़ती है.  आज अपने बूते वे अपनी बेटी को अच्छी फीस देकर पब्लिक स्कूल में पढ़ा रही हैं.  शांति अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर ऊंचे ओहदे तक पहुंचाना चाहती है.  उनका कहना है कि बेटा और बेटी में कोई भेद नहीं है.  महिलाएं सभी कार्य करने में सक्षम हैं. शांति का कहना है कि उनका प्रयास अधिक से अधिक महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का है.

 

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