प्रचंड हार से कांग्रेस परेशान नहीं हैरान

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देहरादून। संवाददाता। उत्तराखण्ड की सभी पांचो सीटों पर मिली करारी हार के बाद कांग्रेस नेताओं की स्थिति ऐसी है कि काटो तो खून नहीं। कांग्रेस नेता हैरान परेशान है और उन्हे कुछ भी जवाब देते हुए नहीं बन रहा है। वह इस हार की जिम्मेवारी तो ले रहे है लेकिन सवाल यह है कि हार से वह सबक कब लेंगे?

टिहरी से कांग्रेस प्रत्याशी और प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह अति उदास मन से कहते है कि हारे है तो जिम्मेदारी तो लेनी ही पड़ेगी। जनता का जो आदेश है उसे नकारा तो नहीं जा सकता। साथ ही उनका कहना है कि चुनाव में हार या जीत किसी एक व्यक्ति की नहीं होती, पार्टी की होती है। प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते मैं इस हार को स्वीकार करता हूं। साथ ही उनका हर एक हारने वाले की तरह यह भी कहना है कि पार्टी हाईकमान व प्रदेश स्तर पर इस हार के कारणों पर विचार मंथन किया जायेगा।

लेकिन सवाल यह है कि लगातार तीन चार हार पर विचार मंथन करने के बाद भी अगर स्थिति जस की तस बनी रहती है या और अधिक खराब हो जाती है तो ऐसे विचार मथंन का क्या औचित्य रह जाता है। 2014 लोकसभा चुनाव जिसमें राज्य में अपनी सरकार रहते हुए भी कांग्रेस सभी पांचो सीटों पर हारी थी, के बाद विधानसभा चुनाव और अब 2019 को लोकसभा चुनाव जिसमें एक बार फिर क्लीन स्वीप हो गयी जैसी हार के बाद भी कांग्रेसी नेता कोई सबक लेने को तैयार क्यों नहीं है? यह सबसे अहम सवाल है।

इस हार ने कांग्रेस को बुरी तरह झकझौर दिया है। फिर भी कांग्रेसी नेता अन्दर झांकने को तैयार नहीं है। प्रीतम सिंह का कहना है कि भाजपा मुद्दों पर चुनाव नहीं लड़ती शगुफों और नारों पर चुनाव लड़ती है। उनके इस बयान से साफ लगता है कि वह हार का ठीकरा अभी भी किसी और के सर फोड़ना चाहते है। वह यह भी मानते है कि यह बड़ी हार है। ऐसी हार की उन्हे उम्मीद नहीं थी। खास बात यह है कि कांगे्रस के सबसे वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जो 2014 का लोकसभा चुनाव ही नहीं विधानसभा के चुनाव में भी दोकृदो सीटों से चुनाव लड़ने के बाद भी दोनो जगह से हार गये थे। उन्हे भी इस चुनाव में अजय भट्ट जैसे नेता जो विधानसभा चुनाव तक नहीं जीत सके थे को तीन लाख से भी अधिक मतों से हरा दिया। हरीश रावत के लिए इससे अधिक शर्मनाक हार क्या हो सकती है। तमाम समीकरणों को जांच परख कर अपने लिए नैनीताल सीट का चुनाव करने वाले हरीश रावत अपनी इस हार पर इस कदर स्तब्ध है कि उन्हे कुछ कहते हुए नहीं बन रहा है। उनसे पूछा जा रहा है कि अभी और कितने चुनाव हार कर राजनीति से सन्यास लोगे।

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