यदि फिर चला मोदी मैजिक तो गायब हो जाएगा गैरसैंण का मुद्दा

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देहरादून। संवाददाता। देश भर में चले मोदी मैजिक में उत्तराखंड की पांचों सीटें भी रिकॉर्ड वोटों के साथ बीजेपी की झोली में तो गिर गई हैं लेकिन क्या इसका राजधानी गैरसैंण के मुद्दे पर कोई असर हो सकता है? राजधानी का मुद्दा पूरी तरह राज्य का है और यह कहां हो इसे राज्य को ही तय करना है. लेकिन चुनावी राजनीति पर नजर रखने वाले पर्यवेक्षक मानते हैं कि यह चुनाव परिणाम देश ही नहीं राज्यों के मुद्दों को भी प्रभावित करने वाले हैं और गैरसैंण भी इससे अछूता नहीं रह सकता।

गैरसैंण का अर्थ
चमोली जिले में स्थित गैरसैंण गढ़वाल और कुमाऊं दोनों के बीच स्थित है। गैरसैंण में राजधानी बनाने की बात सबसे पहले 60 के दशक में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने कही थी। अलग राज्य आंदोलन के दौरान गैरसैंण में राजधानी बनाने का सपना भी अलग राज्य के सपने के साथ बुना जाता रहा।

गैरसैंण पर फिर खिंची तलवारें, इस बार बीजेपी सरकार और संगठन में ही
चारु तिवारी कहते हैं कि गैरसैंण में राजधानी का अर्थ विकास के विकेंद्रीकरण का रास्ता है. राजधानी ऐसी नहीं होनी चाहिए जिसमें सिर्फ मंत्री और अधिकारी बैठते हों। राजधानी में विकास का अक्स दिखना चाहिए। गैरसैंण के आलोक में पहाड़ के तमाम मुद्दों को भी देखा जाना चाहिए. लेकिन हालत यह है कि पहाड़ों से लगातार तीन मैदान जिलों में पलायन हो रहा है और हर परिसीमन में पहाड़ में सीटें कम होती जा रही हैं। चारु तिवारी कहते हैं कि ऐसा ही रहा तो 2026 में होने वाले परिसीमन में पहाड़ के 10 जिलों से सीटें घट जाएंगी और तीन मैदान जिलों में बढ़ जाएंगी।

गैरसैंण में 2017 बजट सत्र के दौरान सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए ग्रामीण पहाड़ों से चढ़कर विधानसभा भवन के बाहर पहुंचे थे। वरिष्ठ पत्रकार दिनेश जुयाल कहते हैं कि जब भाजपा ने राज्य निर्माण के समय हरिद्वार को उत्तराखंड में शामिल किया था तो अपना इरादा साफ कर दिया था कि अंततः इस राज्य में मैदानी क्षेत्रों का ही बोलबाला रहना है। अब बीजेपी के दो वरिष्ठ नेता सहारनपुर और बिजनौर को शामिल करने की मांग कर चुके हैं। पहाड़ में पहले ही लोग नहीं रह गए हैं और उनकी आवाज उठाने वाले कम होते जा रहे हैं। ऐसे में अगर यह दोनों मैदान क्षेत्र भी उत्तराखंड में शामिल हो जाते हैं तो पहाड़ी अपने राज्य में ही अल्पसंख्यक हो जाएंगे।

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