बारिश व बर्फबारी से ग्लेशियरों के स्वरूप में हुआ विस्तार

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देहरादून। संवाददाता। उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्रों में इस बार हुई बर्फ़बारी ने पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों के चेहरे खिला दिए हैं. इस बार की लगातार बर्फ़बारी होने की वजह से हिमालय क्षेत्रों के ग्लेशियरों के सेहत सुधार दी है. यही नहीं गंगोत्री गलेशियर का पीछे की ओर खिसकना पिछले कई सालों की अपेक्षा बहुत कम हो गया है।

आसमान से बरसा सुरक्षा कवच

‘थर्ड पोल’ यानी हिमालय में पड़ी रिकॉर्ड बर्फ़बारी ने राहत दी है. वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों का दावा है कि अच्छी बर्फ़बारी के कारण इस साल गर्मियों में ग्लेशियरों की सेकेंड लेयर ‘आइस’ नहीं पिघलेगी. ग्लेशियरों की आइस’ के ऊपर इस बार रिकॉर्ड ‘स्नो’ पड़ी है और यह ग्लेशियरों के लिए भी अच्छा है और उनसे निकलने वाली गंगा जैसी नदियों के लिए भी।

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वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान में ग्लेश्योलॉजी में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर डीपी डोभाल कहते हैं कि हालांकि इस बार बर्फ़ बाकी सालों जितनी ही गिरी है लेकिन इसके गिरने का पैटर्न बहुत अच्छा रहा है. बर्फ़ नियमित अंतराल से पड़ती रही है। बर्फ़ पड़ने के 10-15 दिन में फिर बर्फ़बारी का अगला चक्र शुरु हो गया है जिसने पहले गिरी बर्फ़ को एक सुरक्षा कवच दे दिया और इससे ग्लेशियर प्रोटेक्ट हुए हैं. इस वजह से 3500 मीटर की ऊंचाई तक अब भी बर्फ़ मौजूद है।

गंगोत्री ग्लेशियर को फ़ायदा

इस बर्फ़बारी की वजह से ग्लेशियर रीचार्ज भी हो गए हैं. डोभाल के मुताबिक बर्फ अच्छी होने से सालभर पानी की कमी नहीं होने वाली है. डॉक्टर डोभाल बताते हैं कि दरअसल पानी मुख्यतः स्नो से ही मिलता है. इस बार बहुत अच्छी बर्फ़ (स्नो) पड़ी है इसलिए नदियों में अच्छा पानी रहेगा।

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