संसद में धार्मिक नारे लगाने की इजाजत नहीं दूंगा; लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला

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दिल्ली। 17वीं लोकसभा के नवनिर्वाचित अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कहा कि वह संसद भवन के अंदर धार्मिक नारों को लगाने की इजाजत नहीं देंगे। बिड़ला ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि संसद नारे लगाने, प्लेकार्ड दिखाने या वेल में आने वाली जगह है। इसके लिए एक जगह है जहां वह जाकर प्रदर्शन कर सकते हैं। लोग कुछ भी कहना चाहते हैं, जो भी आरोप लगाना चाहते हैं, चाहे वह सरकार पर हमला करना चाहते हैं तो वह कर सकते हैं लेकिन उन्हें गैलरी में आकर यह सब नहीं करना चाहिए।’

जब उनसे पूछा गया कि क्या वह इस बात का आश्वासन दे सकते हैं कि इस तरह की नारेबाजी दोबारा नहीं होगी तो उन्होंने मना कर दिया। 56 साल के बिड़ला ने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि ऐसा दोबारा होगा या नहीं लेकिन मैं नियमानुसार संसद को चलाने की कोशिश करुंगा। जय श्रीराम, जय भारत, वंदे मातरम् के नारे एक पुराने मुद्दे हैं। बहस के दौरान यह अलग होते हैं। हर बार अलग परिस्थितियां होती हैं। परिस्थितियां क्या हैं इसका निर्णय अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति द्वारा किया जाता है।’ जब उनसे पूछा गया कि संसद में अपने भाषण के दौरान उन्होंने वंदे मातरम् क्यों कहा तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा, ‘किसने कहा कि हम वंदे मातरम् और भारत माता की जय नहीं बोल सकते हैं।’

लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चैधरी ने अपने स्वागत भाषण में नारेबाजी का उल्लेख किया था। चैधरी ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि यह बहुदलीय लोकतंत्र की भावना का हिस्सा है।’ उनके बयान पर जवाब देते हुए बिड़ला ने कहा, ‘मैं इसे लेकर स्पष्ट हूं। संसद लोकतंत्र का मंदिर है। इस मंदिर को संसद के नियमों के जरिए चलाया जाता है। मैंने सभी पक्षों से अनुरोध किया है कि हमें जितना हो सके इस स्थान की शोभा को बनाए रखना चाहिए। हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। हर कोई हमारी तरफ देखता है। ठीक इसी तरह हमारी संसदीय प्रक्रियाओं को भी दुनिया भर में एक उदाहरण स्थापित करना चाहिए।’

दो बार के सांसद बिड़ला राजस्थान के कोटा से भाजपा सांसद हैं। उन्होंने कहा, ‘सभी पार्टियों ने मुझपर अपना विश्वास जताया है। ऐसे में यह मेरा कर्तव्य है कि मैं उस विश्वास को बनाए रखूं। हर किसी के पास अभिव्यक्ति का अधिकार है। सरकार को और अधिक जिम्मेदार होना होगा क्योंकि उनके पास इतना बड़ा बहुमत है। उन्हें सभी सवालों के जवाब देने होंगे। मैंने देखा है कि सरकार हमेशा बहस की मांग को स्वीकार करती है।’

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