पिथौरागढ़ की महिलाओं का प्रेग्नेंट होना बन गया अभिशाप

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पिथौरागढ़। संवाददाता। शादीशुदा महिलाओं का प्रेग्नेंट होना पूरी दुनिया के लिए भले ही आम हो, लेकिन चीन और नेपाल सीमा से सटे पिथौरागढ़ के दुर्गम इलाकों में रहने वाली महिलाओं के लिए यह आसान नहीं है। इस जिले में एक नहीं बल्कि दर्जनों ऐसे गांव हैं, जहां महिलाओं के लिए सुरक्षित डिलीवरी का कोई साधन नहीं है। ऐसे में जहां कहीं गर्भवती महिलाओं को सैंकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा कर सुरक्षित प्रसव कराना पड़ रहा है, तो कुछ को डिलीवरी के दौरान ही जान गंवानी पड़ रही है।

और चली गई बिंदु की जान

बीते रोज नेपाल से सटे सेल गांव की बिंदु देवी ने एक साथ जुड़वा बच्चों को जन्म दिया, लेकिन वो जिंदा नहीं बच सकी। सेल को जोड़ने वाला रास्ता बरसात के सीजन में बंद है, जिस कारण डिलीवरी के वक्त उसे अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका। नतीजा ये रहा है कि 26 साल की बिंदु दो बच्चों को जन्म देकर दुनिया को अलविदा कहने पर विवश हो गई। कहने को तो सेल गांव में ऐलोपेथिक अस्पताल है, लेकिन जब जरूरत पड़ी तो बिंदु को न तो डॉक्टर्स की सेवा मिल पाई और न ही एनएनएम की परिजन रास्ता बंद होने के कारण गर्भवती बिंदु को मेडिकल सेंटर नहीं पहुंचा पाए। 26 साल की बिंदु दो बच्चों को जन्म देकर दुनिया को अलविदा कहने पर विवश हो गई।

जंगल में डिलीवरी के लिए होना पड़ा मजबूर
बंगापानी तहसील के मेतली गांव में बीते दिनों एक गर्भवती महिला को जंगल के बीच में ही डिलीवरी के लिए मजबूर होना पड़ा था। 21 साल की रेखा देवी को प्रसव पीड़ा के बाद धारचूला सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र ले जाया जा रहा था।, लेकिन मेतली से 5 किलोमीटर पैदल चलने के दौरान ही रेखा ने जंगल में बच्चे को जन्म दे दिया। डिलीवरी के बाद महिलाएं नवजात और रेखा को लेकर वापस गांव लौट गईं। मेतली गांव तक पहुंचने के लिए आज भी 15 किलोमीटर की दुर्गम पैदल यात्रा करनी होती है, उसके बाद करीब 65 किलोमीटर का सफर गाड़ी से करने के बाद धारचूला स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचा जा सकता है।

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