हाथियों के लिए मौत बनता उत्तराखण्ड-

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देहरादून। संवाददाता। उत्तराखंड भले ही हाथी समेत अन्य वन्य जीवों और बायोडायवर्सिटी के लिहाज से धनी माना जाता है। इस धरती का सबसे बड़े प्राणी की संख्या भी यहां अच्छी खासी है लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि देवभूमि हाथी की कब्रगाह बनती जा रही है। राज्य बनने के बाद से अब तक यहां चार सौ हाथियों की मौत हो चुकी है। इनमें से प्राकृतिक मौत सिर्फ़ डेढ़ सौ हाथियों को ही नसीब हुई है।

सेसमिक सेंसकर रोकेगा ट्रेन से टक्कर
उत्तराखंड में अभी 18 सौ से अधिक हाथी मौजूद हैं लेकिन चिंता यहां इनकी अकाल मृत्यु की बड़ी संख्या को लेकर भी है। साल 2000 से लेकर अभी तक मात्र डेढ़ सौ हाथी अपनी स्वाभाविक मौत मरे हैं बाकी करीब ढाई सौ हाथी करंट लगने, ट्रेन या रोड एक्सीडेंट होने या फिर शिकारियों के नापाक इरादों की वजह से मारे गए हैं।

बीते 19 साल में सिर्फ़ बिजली के तारों की चपेट में आने से 37 हाथी मारे गए हैं और इतने ही हाथियों की ट्रेन से कटकर मौत हुई है। इससे चिंतित भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिक अब एक ऐसा सेसमिक सेंसर बनाने के करीब पहुंच चुके हैं जिससे रेलवे ट्रेक पर आने से पहले ही हाथियों की सूचना प्राप्त हो जाएगी।

हाथी कॉरीडोर पर अतिक्रमण

समस्या सिर्फ रेलवे ट्रेक ही नहीं हैं. हाथियों के आने-जाने के जो पारंपरिक रास्ते यानि एलिफेंट कॉरीडोर थे, वहां हाईवे आदि का निर्माण भी एक बड़ी समस्या है। उत्तराखंड में ऐसे 11 हाथी कॉरिडोर हैं जिन पर अतिक्रमण कर दिया गया है।

वर्ष 2017 की गणना के अनुसार उत्तराखंड में 1800 से अधिक हाथी मौजूद हैं। भौगोलिक रूप से उत्तराखंड का अधिकांश हिस्सा पर्वतीय है। मैदान के एक सीमित क्षेत्र में गजराज रहते हैं लेकिन यहां आबादी का बढ़ता दबाव टकराव के रूप में सामने आ रहा है।

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