अनुच्छेद 370 पर भारत के दांव से बदल गई तस्वीर, दूर हुए भारत-पाक

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pakistan and india
दिल्ली। भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर पड़ी बर्फ को पिघलाने के लिए द्विपक्षीय बातचीत का रास्ता अब बेहद कठिन हो गया है। अनुच्छेद 370 पर भारत के दांव के बाद घरेलू मोर्चे पर बुरी तरह घिरे कभी बिना शर्त बातचीत के लिए दबाव डालने वाले पाकिस्तान के पीएम इमरान खान बातचीत के लिए शर्त रख रहे हैं। जबकि भारत आतंकवाद के जारी रहते किसी सूरत में बातचीत नहीं करने के अपने पुराने स्टैंड पर मजबूती से कायम है। जाहिर है कि नई परिस्थितियों में दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू होने की संभावनाओं पर लंबे समय के लिए ग्रहण लग गया है।

पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन और भारत में लोकसभा चुनाव के बाद उम्मीद जताई जा रही थी कि दोनों देश देर-सवेर बातचीत की मेज पर बैठेंगे। इस दौरान पाकिस्तान के पीएम भारत के समक्ष लगातार बिना शर्त बातचीत की पेशकश ही नहीं कर रहे थे, बल्कि दुनिया से भारत की ओर से दिलचस्पी न दिखाने की शिकायत भी कर रहे थे। इसी बीच भारत के जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने के साथ ही राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बदलने के निर्णय के बाद स्थिति में अचानक बड़ा बदलाव आ गया। बिना शर्त बातचीत की पेशकश करने वाले पाकिस्तान ने अब बातचीत के लिए कश्मीर में पुरानी स्थिति बहाल करने की शर्त रख दी।

कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि निकट भविष्य में अब दोनों देशों के बीच संवाद बहाली की संभावना खत्म हो गई है। दरअसल पाकिस्तान की सरकारों और सियासी दलों ने दशकों से कश्मीर को अपने देश में बड़ा मुद्दा बना रखा है। यही कारण है कि पाकिस्तान के पीएम इमरान खान घरेलू राजनीति में ही बुरी तरह उलझ गए हैं। कश्मीर के मोर्चे पर अंतर्राष्टरीय स्तर पर मिल रही लगातार नाकामी से वह अपने देश में विपक्ष के निशाने पर हैं। ऐसे में विपक्ष से दो दो हाथ करने के लिए उनके समक्ष भारत के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाने के अलावा कोई दूसरा चारा भी नहीं है।

क्यों नहीं बन रही है बातचीत की संभावना

कश्मीर मुद्दे को लेकर अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर मिली सफलता से भारत की स्थिति मजबूत हुई है। वहीं समर्थन के अभाव में पाकिस्तान बुरी तरह उलझ गया है। ऐसे में भारत की रणनीति उसे आतंकवाद के सवाल पर घेरने की है। भारत के समक्ष पाकिस्तान की किसी शर्त को स्वीकारने की कोई मजबूरी नहीं है। दूसरी ओर विपक्ष के निशाने पर आए और घरेलू सहित अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर चुनौतियां का सामना कर रही इमरान सरकार कश्मीर पर कुछ सकारात्मक नतीजे आने के बाद ही बातचीत के लिए हामी भर सकती है। जबकि पाकिस्तान के हक में ऐसे नतीजे आने की संभावना दूर दूर तक नहीं है।

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