भूस्खलन के कारण गोमुख बनी झील, गंगा की दिशा भी बदली; ग्लेशियर में जमा मलबे से गोमुख को फायदा भी

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गंगोत्री धाम से लेकर गोमुख तक के करीब 24 किमी दायरे में पूरी घाटी बुरी तरह भूस्खलन की चपेट में है। फिजीकल रिसर्च लेब्रोट्री अहमदाबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नवीन जुयाल के मुताबिक हजारों साल पहले ग्लेशियर गंगोत्री धाम तक फैला हुआ था, लेकिन बाद में ग्लेशियर पिघल गया। अब ग्लेशियर के नीचे रह गया मलबा लूज मटीरियल के रूप में भूस्खलन की चपेट में आ रहा है।

उत्तरकाशी (संवाददाता) : बढ़ते तापमान के बीच गोमुख ग्लेशियर पिघलने की चिंताओं के बीच गंगा के उद्गम स्थल गोमुख पर अब भूस्खलन का खतरा भी मंडरा रहा है। इस बरसात में भूस्खलन के कारण उद्गम स्थल गोमुख झील के रूप में तब्दील होकर रह गया है।

नमामि गंगे मिशन के गंगा ट्रैक के तहत गुरुवार को वैज्ञानिक, पर्यावरण कार्यकर्ता और हिमालय की सेहत के लिए चिंतनशील लोग जब गंगोत्री धाम से 24 किलोमीटर की यात्रा पर गोमुख पहुंचे तो वहां का नजारा देख भौचक रह गए। गोमुख जहां से भागीरथी यानि गंगा की धारा फूटती है, उसके ऊपर नेहरू पर्वत के निचले हिस्से से मलबा आ गया है। इस कारण गोमुख पर छोटी झील बन गई है और अब झील से ही भागीरथी निकल रही है। मलबे के कारण गोमुख पर ही भागीरथी की धारा पश्चिम दिशा में मुड़ गई है।

अभियान के तहत गोमुख पहुंचे वाडिया संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पीएस नेगी के मुताबिक पिछले साल तक गोमुख की जो हिमशिला 80 मीटर तक ऊंची नजर आती थी, वह अब 30 मीटर रह गई है। यही नहीं पहले गोमुख का यह नजारा करीब एक किमी दूर से नजर आ जाता था, लेकिन अब सामने जाने पर ही नजर आ रहा है। गोमुख पहुंचे पर्यावरण कार्यकर्ता जगत सिंह जंगली ने बताया कि 70 के दशक में वे सात दिन तक गोमुख रहे थे, पर अब और तब का नजारा एकदम भिन्न है। जानकारों का मानना है कि यदि यूं ही भूस्खलन हुआ तो गोमुख का नजारा पूरी तरह मलबे में दब सकता है। पर्यावरण कार्यकर्ता द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने भी गोमुख के बदलते स्वरूप पर चिंता जताई। बताया कि गोमुख का स्वरूप हर साल बदल रहा है, जो चिंता का विषय है।

भूस्खलन के कारण 

दरअसल गंगोत्री धाम से लेकर गोमुख तक के करीब 24 किमी दायरे में पूरी घाटी बुरी तरह भूस्खलन की चपेट में है। फिजीकल रिसर्च लेब्रोट्री अहमदाबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नवीन जुयाल के मुताबिक हजारों साल पहले ग्लेशियर गंगोत्री धाम तक फैला हुआ था, लेकिन बाद में ग्लेशियर पिघल गया। अब ग्लेशियर के नीचे रह गया मलबा लूज मटीरियल के रूप में भूस्खलन की चपेट में आ रहा है।

गंगोत्री में नहीं ब्लैक कार्बन

वाडिया संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पीएस नेगी के मुताबिक दुनिया भर में बढ़ते तापमान के लिए ब्लैक कार्बन को प्रमुख वजह माना जाता है। गोमुख ग्लेशियर में ब्लैक कार्बन का पता लगाने के लिए संस्थान ने भोजवासा और चीड़वासा में दो ऑब्जर बैटरी स्थापित की है। शुरुआती छह माह के नतीजों में गोमुख में ब्लैक कार्बन की मौजूदी मामूली पाई गई। बताया कि ग्लेशियरों का पिघलना एक सामान्य प्राकृतिक क्रिया है। गंगोत्री ग्लेशियर भी प्रतिवर्ष 10 से 25 मीटर की अलग-अलग दर से पिघलना रिकॉर्ड हुआ है।

फायदा भी हो सकता है

डॉ. नेगी ने कहा कि ग्लेशियर में जमा मलबे से गोमुख को फायदा भी हो सकता है। क्योंकि मलबे से ढक जाने के कारण ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार कम हो जाएगी।

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