डीडीहाट के बताड़ीगाँव का जैविक अमरुद, स्वाद में बेजोड़; खा लिया एक बार तो मांगे बार-बार

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  • उत्तराखंड के 90 प्रतिश उत्पाद जैविक होते हैं। आवश्यकता केवल इतनी हैं कि इन उत्पादों का सुनियोजित तरीके से संकलन और ग्रेडिंग कर बाजार उपलब्ध कराया जाय।
  • ऐसे ही एक शतप्रतिशत जैविक अमरुद की चर्चा इन पंक्तियों में की जा रही हैं, जो इन दिनों डीडीहाट सहित आसपास के बाजारों में धाक जमाए अपनी मिठास और स्वाद के लिए सभी को लुभा रहा है।

डीडीहाट(पिथोरागढ़) : देश के प्रधानमन्त्री ने कल केदार बाबा के धाम से कहा कि उत्तराखंड को जैविक प्रदेश बनायेंगे, पर सच तो यह हैं कि उत्तराखंड के 90 प्रतिश उत्पाद जैविक होते हैं। आवश्यकता केवल इतनी हैं कि इन उत्पादों का सुनियोजित तरीके से  संकलन और ग्रेडिंग कर बाजार उपलब्ध कराया जाय।

ऐसे ही एक शतप्रतिशत जैविक अमरुद की चर्चा इन पंक्तियों में की जा रही हैं, जो इन दिनों डीडीहाट सहित आसपास के बाजारों में धाक जमाए अपनी मिठास और स्वाद के लिए सभी को लुभा रहा है। पहाड़ में उत्पादित सामान्य  अमरूद से आकार में बड़ा यह अमरूद खास है। एक बार जो चख लेता है वह इसे दोबारा खरीदने जरूर पहुंचता है।

यह अमरूद तहसील के जिस गांव से आता है, उस गांव की तीन माह की पूरी अर्थव्यवस्था इसी फल के व्यापार से चलती है। तहसील के सेरासोनाली ग्राम पंचायत के दूरदराज के बताड़ीगांव की मिट्टी और आबोहवा में उत्पादित होते हैं यह स्वादिष्ट अमरूद। एक दशक पूर्व तक यह अमरूद आसपास के गांवों बोराबुंगा, लखतीगांव, सोनानी, पाराकोट के ग्रामीण ही इसके स्वाद से परिचित थे। क्षेत्र के अलाईमल के मंदिर में नवरात्रि की पंचमी को लगने वाले मेले में बिकने आते थे। तब आसपास के इन गांवों के लोग इसका स्वाद चख पाते थे।

दस साल पूर्व जौरासी बाजार में पहुंचा अमरूद

बताड़ीगांव के अमरूद उत्पादक दस साल पूर्व तक आसपास के गांवों में जाकर बेचते थे। दस वर्ष पूर्व गांव के स्व. पुष्कर राम ने पहली बार दस किमी की चढ़ाई चढ़ कर अमरूद को जौरासी बाजार में पहुंचाया। तब इस अमरूद की मिठास क्षेत्र से बाहर पहुंची। एक दशक के बीच इस क्षेत्र में लखतीगांव तक सड़क बनने से अब फल डीडीहाट, चौबाटी, नारायणनगर, मिर्थी, चरमा और ओगला तक पहुंच चुका है।

सितंबर से नवंबर तक ग्रामीणों की आजीविका का साधन

बताड़ी गांव के एक दर्जन परिवार सितंबर से नवंबर से अमरूद बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं। प्रति परिवार इस तीन माहों में अमरूद बेचकर 15 से 25 हजार रुपये कमा लेते हैं। गांव के पूरन राम, त्रिलोक राम, आनंद राम, शंकर राम, भीम राम, धरम राम, चनर राम, डिगर राम, जवाहर राम, इंद्र सिंह कन्याल के परिवार अमरूद के व्यापार से जुड़े हैं।

68 फीसद कैलोरी है अमरूद में

अमरूद के 100 ग्राम में 68 फीसद कैलोरी है। इसमें पोटेशियम भी अच्छा स्रोत है। डायेट्री फाइबर 20 फीसद होने से यह पेट के लिए काफी लाभदायक है। इसके बाद भी यहां उत्पादित फल में जल्दी कीड़े पनपने की समस्या के चलते अमरूद उत्पादक इन्हें थोड़ा कच्चा ही खरीदकर बेचने को लाते हैं।

ग्रामीण चाहते हैं जूस और जैली बनाना

बताड़ीगांव के ग्रामीण अमरूद का जूस और जैली बनाना चाहते हैं परंतु प्रशिक्षित नहीं होने से यह नहीं कर पा रहे हैं। अमरूद को बाजार तक पहुंचाने में ढुलान काफी अधिक आ रहा है। वहीं बताड़ीगांव की मिट्टी लाल लेटेराइट मिट्टी है। गांव समुद्रतल से एक हजार मीटर की ऊंचाई पर है। गर्म जलवायु यहां अमरूद उत्पादन के लिए बेहद अनुकूल है। पेड़ों की वैज्ञानिक तरीके से देखभाल, कीड़ों से मुक्ति के प्रयास ग्रामीणों के बूते से बाहर है। ग्रामीण चाहते हैं कि उन्हें इसके लिए मार्गदर्शन मिले तो वह अमरूद उत्पादन कर आत्मनिर्भर बनेंगे।                                                                                       -विजेंद्र मेहता

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