जन सरोकारों से जुड़ा एक जिलाधिकारी, जिसने पहाड़ का दर्द देखा ही नहीं, भोगा भी है, इसलिए बना है लोगों की उम्मीद की किरण

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  • मंगेश घिल्डियाल कहते हैं- ‘मैंने पहाड़ के दर्द को देखा नहीं, भोगा है। इसीलिए मेरा प्रयास है कि मेरे स्तर पर जो भी संभव है, उसमें कमी न रहे’
  • पहाड़ जैसे संघर्ष के बाद आइएएस अफसर बने  मंगेश घिल्डियाल अपने से जो भी अच्छा हो सके कर रहे हैं
  • उनकी लोकप्रियता किसी भी जननायक से अधिक है, वास्तव में  मंगेश घिल्डियाल ही वास्तविक अर्थ में जननायक हैं  

प्रयाग (संवाददाता) : यहाँ के जिलाधिकारी 32 वर्षीय मंगेश घिल्डियाल स्थानीय जनता के बीच खासे लोकप्रिय हैं। मंगेश को हर उस जगह सक्रिय देखा जा सकता है, जहां लोगों की प्रशासन से उम्मीद होती है। उन्हें शिक्षकों की कमी से जूझ रहे स्कूलों में पढ़ाते हुए भी देखा जा सकता है और पोषाहार की गुणवत्ता जांचने के लिए बच्चों संग जमीन पर बैठ भोजन करते हुए भी। इसीलिये जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल स्थानीय जनता में लोकप्रिय ही नहीं एक उम्मीद की किरण भी हैं।

पहाड़ी गांवों को जहां वाहन नहीं जा सकता पैदल नापते हैं मंगेश 

पहाड़ी गांवों में जहां वाहन नहीं जा सकता है, मंगेश वहां पैदल पहुंच जाते हैं। जन समस्याओं का मौके पर निस्तारण करना उनकी कार्यशैली में शामिल है। जनसेवा के प्रति उनका समर्पण ही उन्हें जनता के बीच खासा लोकप्रिय बनाता है। गांवों की दशा सुधारने के लिए उनके निर्देश पर प्रत्येक जिलास्तरीय अधिकारी ने एक-एक गांव गोद लिया है। डीएम ने वाट्सएप पर एक ग्रुप बनाया है। जिससे सभी ग्राम प्रधान और ग्रामीण जुड़े हैं। इस ग्रुप पर शिकायत और समस्या डाली जाती है, जिसका तत्काल संज्ञान लिया जाता है। निर्धन परिवारों के मेधावी बच्चों को आाइआइटी और सिविल सर्विसेज परीक्षाओं की निशुल्क कोचिंग का बीड़ा भी उन्होंने उठाया है। मंगेश कहते हैं कुछ करने का जज्बा हो तो रास्ते निकल आते हैं।

दरअसल, पहाड़ का यह अधिकारी पहाड़ जैसे संघर्ष के बाद आइएएस अफसर बना है। मंगेश के पिता बृजमोहन घिल्डियाल प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। मूलरूप से पौड़ी, उत्तराखंड के ग्राम टाडियो के रहने वाले मंगेश की आरंभिक शिक्षा गांव के विद्यालय से हुई। 12वीं उन्होंने नैनीताल जिले के रामनगर से की और इसके बाद कुमाऊं विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान में एमएससी की। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) में उन्होंने बतौर वैज्ञानिक करियर की शुरुआत की ही थी कि इसी बीच वर्ष 2011 में उनका चयन सिविल सेवा में हो गया। मंगेश कहते हैं, मैंने पहाड़ के दर्द को देखा नहीं, भोगा है। इसीलिए मेरा प्रयास है कि मेरे स्तर पर जो भी संभव है, उसमें कमी न रहे।

मंगेश का तबादला जब बागेश्वर से रुद्रप्रयाग का हुआ तो इसकी सूचना मिलते ही लोग सड़कों पर उतर आए। अक्टूबर 2016 से मई 2017 तक वह यहां जिलाधिकारी रहे थे। इतनी कम अवधि में वह जनता के नायक बन गए। बागेश्वर के रहने वाले हरीश सोनी बताते हैं कि डीएम छात्रों से घुलमिल जाते थे। पढ़ाई-लिखाई में हर संभव सहयोग करते। अपने नोट्स साझा करते। ग्रामीणों से भी वे एक हमदर्द बन और बेहद सहजता से पेश आते हैं। उनकी हर समस्या का तुरंत हल निकालते हैं।

जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल की पत्नी ऊषा घिल्डियाल भी पति का अनुसरण कर रही हैं। रुद्रप्रयाग के बालिका इंटर कॉलेज में पिछले दिनों विज्ञान की शिक्षिका कमी थी, जबकि परीक्षाएं सिर पर थीं। तब ऊषा ने यह जिम्मेदारी उठाई। तीन माह तक निशुल्क शिक्षण कार्य किया। विज्ञान में पीएचडी कर चुकीं ऊषा कहती हैं, बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल जाए तो अभिभावक यहां से पलायन क्यों करेंगे। बालिका इंटर कॉलेज में दसवीं की छात्रा सोनाली कहती हैं कि ऊषा मैडम सहेली जैसी हैं। उनसे डर नहीं लगता। मैडम ने कहा है कि विषय में कभी कुछ समझ में न आए तो सीधे उनके पास आ जाना।

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