नहीं रहे ‘लोक संस्कृति का चितेरा’ डा. शेर सिंह पांगती; आज देहरादून के नींबूवाला में ली अंतिम सांस

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डा. शेर सिंह पांगती ने मुन्स्यारी में जोहार घाटी की संस्कृति पर आधारित संग्रहालय ‘ट्राइवल हेरीटेज म्यूजियम’ भी बनाया।

उन्होंने हिन्दी और अंग्रेजी में विभिन्न विषयों में स्थानीय इतिहास, भूगोल, संस्कृति, साहित्य और यात्रा संस्मरण सम्बंधी 16 पुस्तकें लिखी हैं।

डॉ. पांगती का जन्म 1 फरवरी 1937 को मुनस्यारी के भैंसकोट में हुआ था। उन्होंने इतिहास में एमए और पीएचडी की। वे 35 वर्षों तक सीमान्त के विभिन्न विद्यालयों में शिक्षक रहे। 

देहरादून (संवाददाता) : पिथोरागढ़ जनपद की सीमान्त तहसील मुनस्यारी ‘जोहार’ के लोक कला के चितेरे व मर्मग्य डा. शेर सिंह पांगती का आज देहरादून के नींबूवाला में निधन हो गया है। डा. पांगती ने अपने व्यक्तिगत संसाधनों से जोहार संस्कृति के उन्नयन, संवर्धन और संरक्षण के लिए अतुलनीय कार्य किया था।

उन्होंने मुन्स्यारी में जोहार घाटी की संस्कृति पर आधारित संग्रहालय ‘ट्राइवल हेरीटेज म्यूजियम’ भी बनाया था। उन्होंने हिन्दी और अंग्रेजी में विभिन्न विषयों यथा स्थानीय इतिहास, भूगोल, संस्कृति, साहित्य और यात्रा संस्मरण सम्बंधी 16 पुस्तकें लिखी हैं। डॉ. पांगती का जन्म 1 फरवरी 1937 को मुनस्यारी के भैंसकोट में हुआ था। उन्होंने इतिहास में एमए और पीएचडी की। वे 35 वर्षों तक सीमान्त के विभिन्न विद्यालयों में शिक्षक रहे।

उनकी विभिन्न विषयों पर लिखी पुस्तकों में जोहार के स्वर, मध्य हिमालय की भोटिया जनजाति, एक स्वतंत्रता का जीवन संघर्ष, मुनस्यारी लोक और साहित्य, लोक गाथाओं का मंचन, वास्तुकला के विविध आयाम, राजुला मालूशाही : एक समालोचनात्मक अध्ययन, अभिलेखों का अभिलेखीकरण, कैलाश ए बोथ ऑफ लॉड शिवा, न्यूजीलैंड : द कन्ट्री ऑफ फ्लाइटलेस, मुनस्यारी ए जैम इन द इंडियन हिमालया, फसक-फराल, जोहार ज्ञान कोश, हॉट टूरिस्टिक ऑफ कज्जाख बन्डितस बाई ए जोहरी ट्रेडर्स 1949, राम चरित अभिनय और गौरी घाटी में ऊन उद्योग प्रमुख हैं। लोक संस्कृति के एक पुरोधा डॉ. शेर सिंह पांगती का जाना उत्तराखण्ड के समय, समाज और संस्कृति के लिए अपूरणीय क्षति है।

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