सिर्फ स्थापना दिवस की उम्र बढ़ सकी उत्तराखण्ड ज्यो का त्यो- पढ़े उत्तराखण्ड रिपोर्ट का नजरिया

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देहरादून। संवाददाता। 9 नवंबर यानी उत्तराखण्ड राज्य स्थापना दिवस। स्थापना वर्ष 2000 से अब तक राज्य ने काफी कुछ पाया है तो खोया भी कम नहीं। आज कई ऐसे कई विभाग ऐसे बचे हैं, जहां हालात आज भी ऐसे नहीं बन पाए हैं कि जिन पर खुश हुआ जा सके।

44 हजार करोड़ रुपये के कर्ज में डूबे उत्तराखंड राज्य की कुल आमदनी 80 फीसदी तक धन नॉन प्लॉन पर खर्च हो रहा है। यानि तनख्वाह, कर्ज आदि पर विकास के मुकाबले सबसे ज्यादा खर्च है। इस सबके बावजूद उम्मीदें बरकरार हैं। राज्य गठन के बाद पहली बार राज्य को प्रचंड बहुमत की सरकार मिली है।

राजनीतिक स्थिरता भी विकास की राह मजबूत करने में अहम रोल अदा करती है। सरकारी प्रवक्ता मदन कौशिक दावा करते है कि सरकार विकास के एक तय एजेंडे पर काम कर रही है। सरकार ने विकास की अपनी प्राथमिकताएं तय की हुई हैं और उन पर चरणबद्ध तरीके से काम शुरू कर दिया गया है।

जानिए मुख्य मुद्दों का हाल
सामाजिक विकास
आंकड़े राज्य की प्रतिव्यक्ति आय 17 साल में 13,516 से बढ़कर 1.60 लाख से ज्यादा हो चुकी है। सामाजिक विकास (ह्यूमन डेवलेपमेंट इंडेक्स) में देश में उत्तराखंड का चैथा नंबर है।
हकीकतरू प्रतिव्यक्ति आय के मामले में केवल देहरादून, हरिद्वार, यूएसनगर की स्थिति ही बेहतर है। बाकी पर्वतीय जिलों में प्रतिव्यक्ति आय संतोषजनक नही हैं। सामाजिक विकास के आंकड़े भी मैदानी जिलों में ही बेहतर हैं।

सड़क नेटवर्क
आंकड़ेरू राज्य के 15,745 गांवों में से 12,120 सड़कों से जुड़ चुके हैं। राज्य में 17 हजार 64 किलोमीटर नई सड़कें बन चुकी हैं। चारधाम से जुड़ी ऑलवेदर रोड का निर्माण भी तेजी पर है।
हकीकतरू राज्य में नई सड़कें बनीं तो हैं लेकिन उनके रखरखाव की स्थिति बेहतर नहीं है। गांव सड़कों से जुड़े हैं पर इन पर लेकिन इनके लिए परिवहन की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। लोग आज भी प्राइवेट जीप-टैक्सी मैक्सी पर ही निर्भर हैं।

पीने का पानी
आंकड़े राज्य की 21 हजार 345 बस्तियों में मानक के अनुसार पर्याप्त पानी मिल रहा है। शहरी क्षेत्रों में पेयजल की सप्लाई मे सुधार आया है। नई योजनाओं के जरिए दुर्गम क्षेत्रों में पीने के पानी की व्यवस्था की जा रही है।
हकीकत 17,846 बस्तियों में आज भी पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा। 18 बस्तियों में पानी की गुणवत्ता भी खराब है। सरकारी सिस्टम से मिल रहे पानी की स्वच्छता आज भी विश्वसनीय नहीं है।

बिजली
आंकड़ेरू राज्य के 98.90 प्रतिशत गांवों तक बिजली पहुंच चुकी है। जल विद्युल परियोजनाओं के 20 मिलियन यूनिट तक जरिए बिजली का उत्पादन हो रहा है।
हकीकतरू ग्रामीण क्षेत्रों में भरपूर बिजली अब भी दूर की कौड़ी है। राज्य की जल संपदा की क्षमता के अनुसार बिजली भी पैदा नहीं हो पा रही है।

वन
आंकड़े उत्तराखंड का करीब 70 फीसदी क्षेत्र वन क्षेत्र है। यह वन संपदा दुनिया को पर्यावरण की रक्षा में सहयोग कर रही है। हकीकत पर इसका राज्य को लाभ नहीं हो रहा। कड़े वन कानून विकास में बाधक बने हैं। राज्य पर्यावरण संरक्षण के एवज में ग्रीन बोनस के रूप में भरपाई की मांग करता तो है पर यह अब तक मिला नहीं।

शिक्षा
आंकड़े सरकारी स्कूल और स्कूलों में छात्र संख्या बढ़ी है। सर्वशिक्षा अभियान में देश में नंबर टू स्थिति पर है।
हकीकत पिछले दिनों हुए तमाम सर्वेक्षणों में सरकारी स्कूलों के छात्रों का शैक्षिक स्तर कमजोर पाया गया। सैकड़ों स्कूलों में बिजली, पानी, शौचालय, खेल के मैदान जैसे बुनियादी संसाधन तक नहीं है।

पलायन
आंकड़े देश के तमाम शीर्ष संस्थानों में इस वक्त राज्य के लोग सर्वोच्च पदों पर हैं। समय-समय पर राज्य से पलायन कर गए लोगों ने खुद को साबित किया है। हकीकतरू सुविधाओं के अभाव में पलायन व्यापक स्तर तक बढ़ चुका है। गांव के गांव खाली हो चुके हैं।

पर्यटन
आंकड़े राज्य की तुलना स्विट्जरलैंड से होती है। उत्तराखंड में पर्यटन के विकास की अपार संभावनाएं हैं।
हकीकतरू पर राज्य अब तक इसे वो रूप नहीं दे पाया जो आर्थिकी को संबल दे। तीर्थाटन तो बढ़ रहा है, पर राजस्व देने वाले पर्यटकों को अब तक इंतजार है।

स्वास्थ्य
आंकड़े राज्य में मातृ-शिशु मृत्युदर घटी। अस्पतालों की संख्या में इजाफा हुआ है।
हकीकत डॉक्टरों की बहुत कमी है। सड़क के किनारे, बस-जीप में प्रसव होने की घटनाएं आए दिन सुर्खियां बनती हैं। बालक-बालिका लिंगानुपात 1000रू 908 से घटकर 1000रू 890 हो चुका है।

सरकार जनसेवा के लिए प्रतिबद्ध
सरकारी प्रवक्ता मदन कौशिक का कहना है कि उत्तराखंड ने 17 साल के सफर में कई उतार चढ़ाव देखे हैं। अब भाजपा की ईमानदार सरकार के नेतृत्व में उत्तराखंड विकास के नए आयाम स्थापित करेगा। केंद्र सरकार राज्य के विकास के प्रति बेहद गंभीर है और प्रदेश सरकार पूरी निष्ठा के साथ जनसेवा को प्रतिबद्ध है।

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