बदरीनाथ के कपाट बंद होने पर पुजारी को स्त्री रूप करना होता है धारण

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देहरादून। संवाददाता। भगवान बदरीनाथ के कपाट बंद होने की प्रक्रिया अनूठी है। यहां चार दिन पहले ही कपाट बंद होने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। खास बात यह है। मंदिर के रावल यानी पुजारी को इस घड़ी में स्त्री का वेष धारण करना पड़ता है। इसके पीछे की वजह भी काफी रोचक है।

19 नवंबर को बदरीनाथ मंदिर कपाट बंद होंगे। इससे पहले भगवान का शृंगार पुष्पों से किया जाएगा। अब तक भगवान आभूषणों और दिव्य वस्त्रों में रहते हैं। मगर कपाट बंद होने के दिन भगवान के संपूर्ण विग्रह को हजारों फूलों से सजाया जाएगा। न सिर्फ भगवान का श्रृंगार फूलों से होगा बल्कि संपूर्ण मंदिर परिसर फूलों से सजा होगा। 19 नवंबर को जब कपाट बंद होंगे तो उससे पूर्व बदरीनाथ गर्भगृह में विराजित कुबेर जी और उद्धव जी के विग्रह को सम्मान पूर्वक बाहर लाया जाएगा। इन्हें दूसरे दिन पांडूकेश्वर लाया जाता है।

बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद करने की प्रक्रिया शुरू, 17 साल बाद दुर्लभ संयोग
मंदिर के रावल यानी पुजारी सखी बनकर लक्ष्मी मंदिर में जाते हैं, स्त्री वेष धारण करते हैं और लक्ष्मी के विग्रह को गोद में उठाकर मंदिर के अंदर भगवान के सानिध्य में रखेंगे। यहां मान्यता यह कि उद्धव ही कृष्ण के बाल सखा है और उम्र में बड़े, इसलिए लक्ष्मी जी के जेठ हुए। हिन्दू परंपरा के अनुसार जेठ के सामने बहू नहीं आती है। इसलिए पहले जेठ बाहर आयेंगे तब लक्ष्मी को विराजा जाएगा। उधर, बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने की प्रकिया के तहत बदरीनाथ में स्थित श्री गणेश मंदिर के कपाट विधि विधान के साथ बुधवार को बंद कर कर दिए गए। अब भगवान के कपाट खुलने पर ही गणेश के कपाट भी खुलेंगे।

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