शिक्षा, संस्कार और आनंद का केंद्र होते हैं भारतीय परिवार- रवीन्द्र जोशी

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जीवन मूल्यों का बीजारोपण करने वाले केंद्र हैं परिवार।

हम सब जानते हैं कि हमारे भारत में कुटुंब/परिवार केवल आवश्यकता पूर्ति का केंद्र नहीं होते, बल्कि भावनाओं को दिशा देने वाले, बुद्धि को आकार देने वाले, जीवन मूल्यों का बीजारोपण करने वाले केंद्र हैं। हमें यह समझने का प्रयास करना चाहिए कि परिवार शिक्षा, संस्कार और आनंद के केंद्र हैं। इस लेख में दो परिवारों का जिक्र आएगा, जो हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत बन सकते हैं। इनसे हम आज की परिस्थितियों में परिवार में सौहार्दपूर्ण वातावरण का निर्माण करना सीख सकते हैं।

इसके लिए सप्ताह में कम से कम एक दिन परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ बैठकर भोजन करना चाहिए। बड़ों के प्रति सम्मान और आपस में भाईचारे का निर्माण हो सके, इस प्रकार की चर्चा करनी चाहिए।

हमारा आपस का प्यार बढ़ता रहे, किन्तु यह अपने परिवार तक सीमित न रहे, बल्कि अपने मुहल्ले और गांव का वातावरण बदलने में सहयोगी हो। प्रत्येक गृहस्थ को अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी निभाते समय रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं अतिथि सत्कार, इन छः बातों का ध्यान भी अवश्य देना चाहिए। महाराष्ट्र प्रवास के दौरान एक परिवार की दिनचर्या देखकर मन आनंद से भर गया।

आदर्श परिवार – एक 

बारामती गांव के इस परिवार में माताजी, उनके दो पुत्र, दो पुत्र वधू एवं उनकी तीन कन्याएं सब एक साथ रहते हैं। सबकी सुबह पांच बजे ब्रह्म मुहूर्त में होती है। उसके बाद सभी टहलने जाते हैं। घर लौटने के बाद आम, अमरुद, तुलसी आदि के पत्तों की चाय बनाकर पीते हैं। घर के आसपास का वातावरण भी आनंदित करने वाला है। चारों ओर छोटे-बड़े पेड़ लगे हैं। पेड़ों पर रहने वाले पक्षी अपने कलरव से मधुर संगीतमय वातावरण का निर्माण करते हैं। यह परिवार इन पक्षियों को नित्य आधा किलो चावल पकाकर खिलाता है। यह उनकी परंपरा बन गई है। इस परिवार से हम सबको प्रेरणा लेनी चाहिए। वर्तमान में जहाँ एक ओर परिवार बिखर रहे हैं, उसी समय में यह परिवार मिल-जुल कर रहने का सन्देश देता है। घर की मातृशक्ति सबकी सेहत का ख्याल रखती हैं। दोनों समय रसोई में ताजा भोजन पका कर सबको खिलाया जाता है। रात्री में परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर आमोद-प्रमोद से गपशप करते हैं। घर की बेटियां पढ़ाई के साथ संगीत, चित्रकला, पुस्तक पढ़ने और ब्लॉग लेखन में रूचि लेती हैं। इस स्वस्थ दिनचर्या के कारण घर के लोग बीमार नहीं पड़ते। सदा आनंद बिखेरते रहते हैं।

आदर्श परिवार – दो 

इसी तरह, मराठवाडा के एक गांव का परिवार पूना शहर में रहता है। माता-पिता दोनों कमाई के लिए घर से बाहर जाते हैं। अपने परिवार को बड़ा करने और उसकी सुख-सुविधा के लिए आज की परिस्थितियों में माता-पिता दोनों को धन कमाने के लिए प्रयास करना मानो आवश्यक हो गया है। ऐसी परिस्थिति में परिवार में नयी पीढ़ी को संस्कार, स्नेह मिल सके, इसके लिए विशेष प्रयास करना बहुत जरूरी है। हालाँकि यह विशेष प्रयास बहुत आसान हैं। इस परिवार में बच्चों को संस्कार, शिक्षा, लाड-प्यार मिल सके, इसके लिए बच्चों के नानाजी हर महीने चार-पांच दिन के लिए गाँव से पूना आ जाते हैं। वह बच्चों के साथ रहते हैं। उन्हें अपने देश के महापुरुषों के जीवन की कहानियां सुनते हैं। इससे उन बच्चों को सहज ही अपनी संस्कृति की जानकारी हो जाती है, उन्हें संस्कार प्राप्त हो जाते हैं और उनकी मेधा शक्ति समृद्ध हो जाती है। गुजरात प्रवास में मुझे एक सुंदर वाक्य पढ़ने को मिला- “तमे प्रसन्न रहो, नहीं तो तमारो डाक्टर प्रसन्न रहे छे।।“ अर्थात तुम प्रसन्न रहो, नहीं तो आपका डॉक्टर प्रसन्न रहेगा। इस बात को समझने से सबका जीवन सुखमय मंगलमय होगा, ऐसा विश्वास है। इसके लिए परिवार में आनंद का वातावरण बनाना जरूरी है।

सहसंयोजक, अखिल भारतीय कुटुंब प्रबोधन
नागपुर, महाराष्ट्र

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