उत्तराखंड उच्च न्यायालय का राज्य सरकार को सुझाव; शादी के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन पर रोक के लिए सरकार कानून बनाये।

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नैनीताल (संवाददाता) : उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को धर्मांतरण के संबंध में मध्य प्रदेश व हिमाचल प्रदेश के ‘‘फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट’ की तरह कानून बनाने का सुझाव दिया है। साथ ही यह स्पष्टीकरण भी दिया है कि राज्य सरकार को सुझाव देना न्यायालय का कार्य नहीं है, लेकिन धर्मातरण की बढ़ रही घटनाओं के मद्देनजर यह सुझाव दिया जा रहा है, ताकि केवल शादी के लिए धर्मातरण न किया जाए।

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक मामले में सुनवाई के बाद राज्य सरकार को सोमवार को सुझाव दिया कि मध्य प्रदेश व हिमाचल प्रदेश की तरह उत्तराखंड में भी फ्रीडम आफ रिलीजन एक्ट बिना धार्मिक भावनाओं को आघात किये बनायें ताकि सिर्फ शादी के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन न किया जाए। कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया है कि इस सम्बन्ध में राज्य सरकार को एक्ट बनाने के लिए नहीं कह सकती है परंतु बदलते हुए सामाजिक परिवेश को देखते हुए सरकार को सुझाव देती है।

मामले के अनुसार रुद्रपुर निवासी एक व्यक्ति ने अपनी बेटी के गायब होने की सूचना पुलिस के पास दर्ज कराई थी। बाद में उसे पता चला कि उसकी लड़की को एक मुस्लिम लड़के ने जबरदस्ती अपने पास रखा है। जिस पर लड़की के पिता ने हाईकोर्ट में बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। इस पर पूर्व में हुई सुनवाई में कोर्ट ने लड़का व लड़की दोनों को कोर्ट में पेश करने के लिए पुलिस को निर्देश दिए थे। अंतत: 14 नवम्बर को दोनों कोर्ट में पेश हुए थे। उस दिन लड़की ने कोर्ट को बताया कि उसने लड़के के साथ हिन्दू रीति रिवाज से शादी कर ली है। उसने तब यह भी बताया कि शादी से पहले उसका पति आदिल हुसैन अंसारी मुस्लिम था और वह धर्म बदलकर अतुल शर्मा बन गया है। इस पर याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट को बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार केवल शादी करने के लिए ही धर्म परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने पिछली सुनवाई के बाद लड़की को गर्ल्स हॉस्टल रुद्रपुर भेज दिया था।

आज दोनों का विवाह कराने वाले आर्य समाज मंदिर बिजनौर के पुरोहित कुलदीप कुमार आर्य सहित सभी पक्षकार कोर्ट में पेश हुए। लड़की ने कोर्ट में कहा कि वह अपने माता-पिता के साथ वापस जाना चाहती है। इस पर कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिए कि वे उक्त लड़की व उसके माता-पिता को पुलिस सुरक्षा के साथ उनके घर तक छोड़ें। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की एकलपीठ में हुई।

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