चम्पावत के मानर मल्ला गाँव की महिलायें 12 साल से बच्चे की तरह पाल रही हैं इस जंगल को-विनय कुमार शर्मा

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महिलायें प्रतिकूल स्थितियों में भी पौधों की देखरेख करतीं। इसी तरह 12 साल बीत गए। संकल्प अंतत: पूर्ण हुआ। आज मानर मल्ला गांव खूबसूरत घने जंगल से घिर चुका है। गांव के चार बड़े जल स्रोत भी रिचार्ज हो चुके हैं। अब यहां पानी की कोई किल्लत नहीं रही।

चंपावत : उत्तराखंड के चंपावत क्षेत्र का यह गांव कभी बूंद बूंद पानी को तरसता था। हरियाली का दूर दूर तक नामोनिशान न था। भूजल स्तर गर्त में जा समाया था। पानी ढोने की जिम्मेदारी महिलाओं के सिर थी। इसके लिए उन्हें लंबी दूरी तय करनी पड़ती।

परेशानी दिनों दिन बढ़ती जा रही थी और समाधान जरूरी हो चला था। त्रस्त हो उठी महिलाओं ने मंथन शुरू किया। उन्होंने शहर से पहुंचने वाले कुछ जानकारों से भी चर्चा की। उन्हें यह समझने में देर न लगी कि समस्या का मूल कारण क्या है। हरियाली से ही रास्ता निकल सकता था। जिसका संकल्प लेकर महिलाओं ने स्वत: प्रयास शुरू कर दिया।

ऐसे किया समाधान

गांव की 80 महिलाएं एकजुट हो गईं। उन्होंने तय किया कि गांव के इर्द-गिर्द की सारी बंजर भूमि को हरे भरे जंगल में तब्दील कर देंगी। उन्हें पता चल चुका था कि वृक्षों की मौजूदगी से जल स्तर स्वत: ऊपर आ जाएगा। महिलाएं पौधरोपण में जुट गईं।

प्रतिकूल स्थितियों में भी पौधों की देखरेख करतीं। इसी तरह 12 साल बीत गए। संकल्प अंतत: पूर्ण हुआ। आज मानर मल्ला गांव खूबसूरत घने जंगल से घिर चुका है। गांव के चार बड़े जल स्रोत भी रिचार्ज हो चुके हैं। अब यहां पानी की कोई किल्लत नहीं रही।

संगठित प्रयास का नतीजा

मानर मल्ला गांव चंपावत जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर खेतीखान रोड पर पड़ता है। यहां कुल 100 परिवारों का बसेरा है। पर्यावरण संरक्षण को लेकर कार्य करने वाली संस्था बायफ डेवलपमेंट एंड रिसर्च फाउंडेशन ने विपत्ति की उस घड़ी में गांव का सहयोग किया। उन्होंने ग्रामीणों को समझाया कि हरियाली न होने के कारण ही जल स्रोत समाप्त हो गए हैं।

यह बात गांव वालों को समझ में आ गई। उन्होंने नर सिंह बाबा चारागाह विकास समूह बनाया। जिसका मकसद था वन पंचायत की 11 हेक्टेयर बंजर जमीन को जंगल में तब्दील करना। जिम्मा संभाला गांव की 80 महिलाओं ने। सबसे पहले पौधों की नर्सरी बनाई गई।

तैयार पौधों को बंजर जमीन में रोपा जाने लगा। बांज, बुरांश, खरसू, मोरू, भीमल और काफल के अलावा कई अन्य प्रजातियों के करीब 27 हजार पौधे रोपे गए। गांव में ही जैविक खाद तैयार की जाती और पौधों में डाली जाती। पौघों के लिए पानी का इंतजाम बरसाती पानी का संरक्षण कर किया जाता।

बच्चे की तरह पाला

बंजर जमीन को हरियाली में बदलने वाले इस समूह में अब सौ से अधिक महिलाएं हैं। समूह की वरिष्ठ सदस्या विमला देवी कहती हैं, 12 साल से इस जंगल को बच्चे की तरह पाल रहे हैं। एक समय था जब गांव में पानी की बहुत समस्या थी, लेकिन आज यहां पानी की कोई समस्या नहीं है। वहीं, तुलसी देवी बताती हैं कि जंगल से लकड़ी काटने वाले पर 500 रुपये का जुर्माना लगाया जाता है। हम सब मिलकर इसकी देखरेख करते हैं-दैनिक जागरण

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