यूपी और उत्तराखण्ड में परिवहन पर बात बनी

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देहरादून। संवाददाता। 17 साल से लंबित उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच लंबित परिवहन करार को आखिर मंजूरी मिल ही गई। उत्तराखंड के परिवहन अधिकारियों की कसरत रंग लाई और अब तक करार के मसौदे से बच रहे उत्तर प्रदेश को बुधवार को प्रस्तावित ड्राफ्ट को मंजूरी देनी पड़ी।

करार के तहत अब उत्तर प्रदेश रोडवेज की बसें उत्तराखंड सीमा में रोजाना 216 मार्गों पर 2472 ट्रिप और एक लाख 40 हजार किमी चलेंगी। इसी क्रम में उत्तराखंड रोडवेज की बसें उत्तर प्रदेश की सीमा में रोजाना 335 मार्गों पर 1725 ट्रिप व दो लाख 50 हजार किमी की यात्रा कर सकेंगी। यूपी रोडवेज की बसों से अब तक उत्तराखंड को टैक्स नहीं मिल रहा था मगर अब उसे प्रतिमाह करीब सवा करोड़ रुपये टैक्स भी देना होगा।

बुधवार को लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने परिवहन करार के मसौदे पर हस्ताक्षर किए। सीएम के साथ परिवहन मंत्री यशपाल आर्य और परिवहन सचिव डी. सेंथिल पांडयिन समेत परिवहन विभाग के सभी आला अधिकारी लखनऊ में मौजूद रहे। करार होने के बाद दोनों राज्यों की रोडवेज बसें निश्चित फेरों के हिसाब से संचालित होंगी।

बताया गया कि बड़ी राहत ट्रांसपोर्टरों को मिलेगी। अब तक उन्हें चार माह में टैक्स कटाना पड़ता था लेकिन अब वे एक ही बार में पांच वर्ष का टैक्स कटा सकेंगे। करार होने के बाद आएदिन बसों को बंधक बनाने व चालकों से हाथापाई को लेकर आने वाले मामलों पर भी रोक लगेगी। साथ ही उत्तराखंड को सालाना करीब 15 करोड़ रुपये रुपये टैक्स मिलने का अनुमान भी है।

बता दें कि, उत्तर प्रदेश से वर्ष 2000 में पृथक होने के बाद तीन वर्ष बाद तक उत्तर प्रदेश रोडवेज की यहां सुविधाएं देता रहा। 2003 में उत्तराखंड परिवहन निगम गठित हुआ पर दोनों प्रदेशों में बसों के संचालन और परिसंपत्तियों के बंटवारे को लेकर एक राय नहीं बनी। पिछले सत्रह साल में पंद्रह बार उच्चस्तरीय कमेटी की बैठक हुईं मगर सहमति नहीं बनी। गत वर्ष फरवरी में भी दोनों राज्यों के अफसरों के बीच लखनऊ में बैठक हुई थी, लेकिन बसों के ट्रिप पर मसला फंस गया।

इसके बाद पांच अप्रैल 2016 को उत्तराखंड में राज्यपाल शासन के दौरान बसों के फेरे व किलोमीटर तय कर दिए थे, लेकिन मामला तभी से लंबित चल रहा है। उत्तर प्रदेश हर मर्तबा कोई न कोई पंगा फंसा देता था लेकिन इस मर्तबा उत्तराखंड ने इन अड़चनों को दरकिनार कर उत्तर प्रदेश को मना ही लिया। अधिकारियों की मानें तो अब परमिटों को लेकर विवाद नहीं होगा व नए रूटों पर रोडवेज बसों का संचालन आसानी से होगा।

खारिज किया उप्र का पेंच

उत्तराखंड को भेजे ड्राफ्ट में उप्र ने एक नई शर्त रखी थी। उसमें शून्य से पांच वर्ष तक पुरानी बस उप्र सीमा क्षेत्र में 600 किमी प्रतिदिन, पांच से सात साल पुरानी बस 400 किमी और सात साल से आयु सीमा पूरी करने तक वाली बस 200 किमी प्रतिदिन चल सकती थी। उत्तराखंड ने शर्त यह कहकर नकार दी कि ऐसा किसी राज्य के करार में नहीं है।

अब चार राज्य शेष

उत्तर प्रदेश से करार के बाद उत्तराखंड का पांच राज्यों से करार हो जाएगा। पंजाब और राजस्थान समेत हिमाचल और मध्य प्रदेश से करार पहले ही करार हो चुका है। अब केवल दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ और जेएंडके से करार होना बाकी है।

धार्मिक मान्यताओं का भी ख्याल

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि बसों के करार में दोनों प्रदेशों की धार्मिक मान्याताओं और पर्यटन का ख्याल भी रखा गया है। इससे माना जा रहा है कि अब उत्तर प्रदेश की बसें उत्तराखंड राज्य में पर्वतीय मार्गों पर भी सेवाएं देंगी।

रोडवेज कर्मियों में खुशी की लहर

यूपी से परिवहन करार के बाद उत्तराखंड के रोडवेज कर्मियों में खुशी की लहर दौड़ गई। उत्तराखंड रोडवेज इंप्लाइज यूनियन के प्रांतीय महामंत्री रवि पचैरी ने कहा कि यह तभी संभव था, जब दोनों प्रदेशों में एक ही दल की सरकार हो। भाजपा सत्ता में आई तो परिवहन करार की उम्मीद जग गई थी। वहीं, उत्तरांचल रोडवेज कर्मचारी यूनियन के प्रांतीय महामंत्री अशोक चैधरी ने कहा कि करार के बाद अब चालकों के साथ उत्तर प्रदेश में बदसलूकी नहीं होगी, न ही हमारी बसें बंधक बनाई जाएंगी।

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