उत्तराखंड में जंगल की आग और धुएं के बीच ‘रवि’ लेकर आए आशा की किरण

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अल्मोड़ा : रवि सूरज का पर्यायवाची शब्द है। इन दिनों अल्मोड़ा निवासी रवि लोगों के लिए आशा की किरण लेकर आए हैं। इन्होंने एक मशीन का आविष्कार किया है, जो बिना पानी के जंगल की आग बुझाने में कारगर साबित हो रही है।

धौलादेवी ब्लाक के दुनाड़ गांव निवासी रवि टम्टा मशीन का वन मंत्री सुबोध उनियाल व वन अधिकारियों के सामने डेमो दिखा चुके हैं। उनकी सहमति मिलने के बाद अब वह इसके प्रदर्शन के लिए दिल्ली भी जा रहे हैं। सब कुछ ठीक रहा तो जल्द यह मशीन वन कर्मियों के हाथ में होगी और वनाग्नि पर आसानी से काबू पाया जा सकेगा। अभी तक सीमित संसाधन व परंपरागत आग बुझाने के ही प्रबंध होने से मशीन आना किसी वरदान से कम नहीं होगी। 

भयावह है दावानल की समस्या

उत्तराखंड में जंगल में लगने वाली आग एक बड़ी समस्या है। गर्मियों के सीजन में यहां करोड़ों की वनसंपदा वनाग्नि की भेंट चढ़ जाती है। साथ ही पशु, पक्षी और पर्यावरण को भी इससे भारी नुकसान पहुंचता है।

प्रदेश में हर साल औसतन 1,978 हेक्टेयर वन क्षेत्र में आग लगती है। पिछले 12 वर्षों में उत्तराखंड के जंगलों में आग की 13,574 घटनाएं हुई हैं, फिर भी आग बुझाने की विभागीय तकनीकी पारंपरिक ही है। 

रंग लाएगी मेहनत

वनाग्नि की घटनाओं को काबू में करने के लिए अल्मोड़ा के रवि टम्टा ने एक ऐसी मशीन ईजाद की है, जो कि बिना पानी के आसानी से आग को बुझा देती है।

इस इलेक्ट्रिक और पेट्रोल दोनों से चलने वाली मशीनों की खासियत यह है कि एक तो इसको एक व्यक्ति आसानी से उपयोग कर सकता है। यह मशीन बहुत कम लागत के साथ कम समय मे आग पर काबू पा लेती है।

विषमता में होगी सरलता

पहाड़ की विषम भौगोलिक परिस्थितियों में पानी के सहारे आग बुझाने असंभव ही हो जाता है। जिससे छोटी की आग से कभी-कभी हालात बेकाबू भी हो जाते है। ऐसे में यह हल्की मशीन पहाड़ के लिए काफी उपयोगी साबित होगी।

अब तक हो चुकी है आग की 154 घटनाएं

इस बार 15 फरवरी से अब तक जंगलों में आग की 154 घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 206 हेक्टेयर वन क्षेत्र को क्षति पहुंची है। अब तो जंगल की आग आबादी के नजदीक तक पहुंचने लगी है। बीते दिवस ही आग नैनीताल जिले में आबादी के पास तक पहुंच गई थी, जिसे बमुश्किल काबू पाया गया।

मशीन का वजन चार किलो

इलेक्ट्रिक मशीन का भार लगभग ढाई किलोग्राम जबकि पेट्रोल से चलने वाली मशीन का भार साढ़े 4 किलोग्राम है। जिसको आसानी से पीठ में बांधकर आग बुझाई जाती है। मशीन के आगे फायर रेजिस्टेंट कपड़ा लगा हुआ है। जो मशीन में लगे बैटरी व पेट्रोल से ऊर्जा पाकर तेजी से घूमता है। जिससे आग को बुझाया जाता है।

मशीन में लागत मामूली

पेट्रोल वाली मशीन बनाने में 12 से 15 हजार व इलेक्ट्रिक वाली मशीन 18-20 हजार रुपये लागत आती है। रवि इस मशीन का डेमोस्ट्रेशन मुख्य विकास अधिकारी और डीएफओ के सामने प्रस्तुत कर चुके हैं।

नई-नई तकनीक ईजाद में लगे रवि

रवि टम्टा ने 12 वीं की पढ़ाई साइंस स्ट्रीम से की। जिसके बाद ओपन यूनिवर्सिटी से उन्होंने स्नातक किया है। वह पहाड़ की समस्याओं के समाधान के लिए  लंबे समय से रिसर्च में जुटे हैं। 12 वीं के बाद ही वह नई खोजों में जुट गए थे। इससे पहले पर इलेक्ट्रानिक वाहनों के चार्जर, बांस बनने की मशीनें आदि भी बना चुके हैं। 

बाेले अधिकारी

डीएफओ महातिम यादव का कहना है कि इस मशीन का हमने डेमोंसट्रेशन कराया था। यह काफी कारगर साबित हो सकती है। ट्रायल के रूप में एक वन विभाग के पास अभी मशीन है, जो इस फायर सीजन में प्रयोग में लाया जाएगा। उच्चाधिकारियों को इस संबंध में पत्राचार कर व्यापक पैमाने पर इन मशीनों को खरीदा जाएगा।

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