पीरूल के पत्तों के तिनके तिनके जोड़कर मंजू शाह ने रखी स्वरोजगार की नीव

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द्वाराहाट। हमारे पहाड़ में चीड़ के पौधों की घास पीरुल को आमतौर पर जंगल में आग लगने का मुख्य कारण माना जाता है। पीरुल घास को इसलिए भी उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है क्योंकि इसे ना तो पशु खाते हैं और ना ही इसे किसी भी प्रकार की कृषि के कार्य केे लिए  काम में लाया जा सकता है।

 

लेकिन द्वाराहाट (अल्मोड़ा) की मंजू शाह ने पीरूल के पत्तों के तिनके तिनके जोड़कर स्वरोजगार शुरू कर दिया है। द्वाराहाट निवासी मंजू चीड़ के पत्तों पीरुल से आभूषण और अन्य सभा सजावटी सामान बना रही हैं।

मंजू बताती हैं कि उनकी मौसेरी बहन पूजा ने उन्हें साज – सज्जा के सामान बनाने का प्रशिक्षण दिया था। लेकिन बहन से सीखे इस हुनर में उन्होंने प्राय जंगलों में बेकार पड़े चीड़ के पत्ते (पिरूल) का अनूठा समावेश किया।

पीरुल के पत्तों से उन्होंने साज – सज्जा का सामान और आभूषण बनाने का प्रयास किया जिसमे उन्हे अच्छी उपलब्धि मिली। मंजू यह कार्य स्कूल की छुट्टी के बाद उन्हें जो समय मिलता है उस समय करती हैं।

राजकीय इंटर कॉलेज तारीखेत (रानीखेत) में प्रयोगशाला सहायक पद पर तैनात मंजू शाह को आज सिर्फ जरूरत है तो उनके इन उत्पादो को प्रोत्साहन देने की। हमारी सरकार को भी चाहिए कि मंजू जैसे प्रतिभावान लोगों को और उनकी कला को एक प्लेटफॉर्म देकर आगे आगे बढ़ाने में उनकी मदद करें।

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