अल्मोड़ा : भैसियाछाना ब्लाक के लिगुड़ता गांव की आशा कार्यकर्ता हेमा भट्ट आज सभी के लिए नजीर बनी हैं। ढाई माह पूर्व पतलचौरा गांव में डोली के अभाव में एक प्रसूता को अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका, उसने जंगल में ही बच्चे को जन्म दे दिया। घटना के बाद न शासन, न ही प्रशासन ने कोई पहल की। लेकिन अल्प मानदेय में काम करने वाली आशा हेमा का घटना से दिल पसीजा। उसने वेतन आते ही पतलचौरा, झिरकोट के गांव को दो डोलियां बनाकर दे दी।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत ग्राम स्वास्थ्य एवं पोषण उपसमिति लिगुडता में काम करने वाली आशा कार्यकर्ता हेमा भट्ट अपने नेक काम से चर्चा का विषय बनी हुई है। हेमा भट्ट ने देखा कि ढाई माह पूर्व पतलचौरा गांव में डोली के अभाव में एक गर्भवती प्रियंका बानी की जान जाते-जाते बची। गर्भवती अस्पताल भी नहीं पहुंच पाई और उसने जंगल में ही बच्चे को जन्म दिया। इस घटना से आशा हेमा का दिल पसीज गया। उसने गांव की महिलाओं के लिए कुछ करने की ठानी। एमए तक पढ़ाई कर चुकी हेमा आशा कार्यकर्ता होने के साथ महिलाओं के अधिकारों के लिए भी संघर्ष करते रहती है। उसे तीन हजार रुपये मानदेय मिलता है। इसलिए वह डोलियां खरीदने में असमर्थ थी। उसने अपनी राष्ट्रीय ग्रामीण पोषण उपसमिति उपसमिति से पूछकर पतलचौरा और झिरकोट गांव के लिए डोली बनाने का निर्णय लिया। उसकी मेहनत और लगन रंग लाई। हेमा ने डोली बनाकर दोनों गांवों को दे दी।
दगड़ियों संघर्ष समिति के प्रताप सिंह नेगी रीठागाडी ने आशा हेमा भट्ट के योगदान की सराहना की। उन्होंने कहा कि सभी लोगों को इसके लिए आगे आना होगा। दो ही गांव नहीं, कई ऐसे गांव है, जिनको डोली की जरूरत है।
गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। इसलिए छोटी-छोटी जरूरतों से उनकी कुछ हद तक समस्या दूर हो सकती है। इसलिए एक प्रयास किया।– हेमा भट्ट, आशा, लिगुडता, भैसियाछाना ब्लाक