अल्मोड़ा। उत्तराखंड की अनूठी लोकविधा को देश दुनिया में नई पहचान दिलाने वाली ‘ऐपण गर्ल’ मीनाक्षी खाती इन दिनों फिर सुर्खियों में है। अबकी वह लोककला के प्रचार प्रसार से ज्यादा पलायन से बेजार गांवों को रिवर्स माइग्रेशन के जरिये दोबारा आबाद करने की पहल को लेकर चर्चाओं में है। खास बात कि पहाड़ की इस बेटी ने पहले खुद अपने गांव का रुख किया है। ताकि अन्य लोगों को भी वीरान पड़े घरों के दरवाजे खोलने व सूने पड़े पारंपरिक नौलों का सन्नाटा दूर करने के लिए प्रेरित किया जा सके।
भाबर में बस चुकी ‘ऐपण गर्ल’ मीनाक्षी खाती माटी का कर्ज चुकाने पैतृक गांव मेहलखंड (ताड़ीखेत ब्लॉक) पहुंची हैं। पखवाड़ा भर से वह गांव की गतिविधियों को वह डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नई पहचान दिलाने में जुटी हैं। ग्रामीण परिवेश, वातावरण, पहाड़ी जीवनशैली, गर्मी फिर बारिश से पर्वतीय वादियों के सौंदर्य में निखार को वह इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि इंटरनेट माध्यमों से प्रवासियों को रिवर्स माइग्रेशन का संदेश दे रही हैं। वह भी ठेठ पहाड़ी बोली में। लगे हाथ मीनाक्षी गांव में ऐपण कला की नई विधाओं से महिलाओं व युवतियों को रू ब रू करा रही हैं। ‘ऐपण गर्ल की यह अनूठी पहल प्रवासियों को खूब भा रही।
ये है गांव आने का मकसद
गांव से दोबारा जुड़ना। अपनी माटी थाती के लिए कुछ करना। गांव की लोकसंस्कृति को आत्मसात करना और कुछ नया करने की कोशिश। खासतौर पर पारम्परिक ऐपण की बारीकियों को गांव के बुजुर्गों से सीख नई पीढ़ी को लोकविधा ऐपण का प्रशिक्षण देना। इस अनूठी लोककला को नए स्वरूप में प्रस्तुत कर इसे रोजगारपरक बना युवाओं को जोड़ना।
रिवर्स पलायन वक्त की जरूरत
‘ऐपण गर्ल कहती हैं कि पहाड़ से जो लोग बाहर मैदानी क्षेत्रों का रुख कर चुके अधिकांश वहीं के होकर रह गए। ऐपण गर्ल मीनाक्षी कहती हैं कि सफल लोगों को वापस अपने गांव लौट ग्रामीण विकास में कुछ न कुछ योगदान जरूर देना चाहिए। रिवर्स माइग्रेशन की ओर गंभीरता से सोचना होगा। खासतौर पर वैश्विक महासंकट से उपजे हालात को अवसर में बदलने के लिए यह बेहद जरूरी हो चुका है। वह कहती हैं कि पहाड़ में कई गांव पलायन की मार झेल रहे हैं। यदि सभी लोग साल में एकाध बार गांव में आते हैं तो इससे लगाव बना रहेगा। गांव के बारे में सोचने का मौका मिलेगा। अन्य प्रवासी भी प्रेरित होंगे।