चमोली: दुर्मीताल में खोदाई के दौरान मिली ब्रिटिश काल की नाव

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गोपेश्वर । ब्रिटिश काल में नौकायन के लिए प्रसिद्ध रहे चमोली जिले की निजमूला घाटी में स्थित दुर्मीताल के पुनर्निर्माण को स्थानीय लोग आगे आए हैं। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर घाटी के एक दर्जन से अधिक गांवों के ग्रामीणों ने दुर्मीताल में एकत्रित ताल के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया। खास बात यह रही कि पहले ही दिन खोदाई में ब्रिटिश काल की एक नाव मलबे में दबी मिली। इसे देखने को ग्रामीणों का हुजूम उमड़ा रहा।

अंग्रेजी शासन काल के दौरान निजमूला घाटी में तकरीबन पांच किमी क्षेत्र में दुर्मीताल फैला हुआ था। तब यहां अंग्रेज अफसर नौकायन का लुत्फ उठाने आते थे। आजादी के बाद भी यह ताल घाटी के एक दर्जन से अधिक गांवों के रोजगार का प्रमुख जरिया हुआ करता था। तब, हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते थे। लेकिन, वर्ष 1971 में आई आपदा में दुर्मीताल बाढ़ की भेंट चढ़ गया। जिससे न केवल घाटी के ग्रामीणों का रोजगार छिना, बल्कि वह तेजी से पलायन भी करने लगे।

ईराणी गांव के प्रधान मोहन सिंह नेगी बताते हैं कि आपदा के दौरान अंग्रेजों की यहां रखी अधिकांश नाव बह गईं और कुछ मलबे में दब गई थीं। अंग्रेजों ने ताल के किनारे नाव रखने के लिए एक किश्ती घर भी बनाया हुआ था। वह भी बाढ़ की भेंट चढ़ गया था। बताया कि शनिवार को खोदाई के दौरान एक नाव मलबे में दबी मिली। दुर्मी गांव के 80 वर्षीय नारायण सिंह बताते हैं कि वर्ष 1971 तक दुर्मीताल में दर्जनों नाव चलती थीं। तब दुर्मी तक सिंगल लेन फोन की सुविधा भी थी। यह फोन अंग्रेजों ने इसलिए लगाया था, ताकि दुर्मीताल में कोई अनहोनी घटने पर तत्काल सूचनाओं के आदान-प्रदान से जनहानि को रोका जा सके।

नारायण सिंह ने बताया कि ग्रामीण लंबे अर्से से दुर्मीताल के पुनर्निर्माण की मांग कर रहे थे। सरकारी स्तर से कोई सुनवाई न होने से अब ग्रामीण स्वयं ही आगे आए हैं। पुनर्निर्माण कार्य में सैंजी, गाड़ी, ब्यारा, थोलि, निजमूला, गौना, दुर्मी, पगना, ईरानी, पाणा, झींझी आदि गांवों के ग्रामीण सहयोग कर रहे हैं।

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