रैणी निवासियों ने खौफ के मारे जंगल और गोशालाओं में गुजारी रात

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चमोली। ग्लेशियर टूटने से ऋषिगंगा नदी में आए सैलाब का खौफ रैणी निवासियों के दिलोदिमाग पर इस कदर हावी रहा कि रात उन्होंने जंगल व गोशालाओं में गुजारी। गांव के सभी 70 परिवार अब भी काफी सहमे हुए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अगर गांव के ठीक सामने बगोटधार का टीला सैलाब का रुख दूसरी ओर न मोड़ता तो रैणी का नामोनिशान मिट चुका होता।

रविवार को आई तबाही का हर रैणी वासी प्रत्यक्ष गवाह है। यह दृश्य इस कदर भयानक था कि पूरा गांव अब भी सदमे में है। स्थिति यह है कि डर के मारे उन्होंने रात भी गांव में नहीं गुजारी। सभी परिवारों ने रात होने से पहले ही गांव छोड़ दिया और ऊंचाई वाले स्थानों, गोशालाओं व जंगल में चट्टान की आड़ लेकर रात गुजारी। सुबह होने पर ही वे गांव वापस लौटे। गांव के गुड्डू राणा कहते हैं, ‘आंखों के सामने ऐसी भयंकर तबाही मैंने जीवन में पहले कभी नहीं देखी।’

ग्रामीण रवींद्र सिंह कहते हैं, ‘रैणी के ठीक सामने की पहाड़ी पर बगोटधार में एक टीला है। सैलाब गांव की ओर आ रहा था, लेकिन बगोटधार के इस टीले ने उसकी दिशा बदल दी। यकीन जानिए इस टीले की बदौलत ही मैं आपके सामने मौजूद हूं।‘ बुजुर्ग मुरली सिंह कहते हैं, ‘ऋषिगंगा नदी में 50 मीटर ऊंची लहरें उठ रही थीं। ऐसा लग रहा था, जैसे सैलाब तबाही मचाने के लिए बेताब हो। मैं उस खौफनाक दृश्य को भुला नहीं पा रहा हूं।’

ग्लेशियर के साथ आए पत्थरों से मकानों में दरारें

ग्रामीण बीना देवी बताती हैं, रैणी गांव ऋषिगंगा नदी से करीब सौ मीटर की दूरी पर है। जब ग्लेशियर टूटकर आया तो उसके साथ पहाड़ से बड़े-बड़े पत्थर भी गिरे, जिससे गांव के कई मकानों में दरारें आ गई हैं। रविवार शाम तक भी ऐसे लग रहा था, मानो चट्टान लुढ़क रही है। बताती हैं, गांव के ऊपर जंगल में ग्रामीणों ने मवेशियों के लिए छानी (गोशाला) बनाई हुई हैं। ये छानियां ही रात को महिलाओं व बच्चों का आसरा बनीं। जबकि, पुरुष खुले आसमान के नीचे रहे। बिछौना न होने के कारण उन्हें घास पर ही सोना पड़ा। खौफ से सहमे कई ग्रामीणों ने तो रात को खाना भी नहीं खाया।

गांव में खतरे को देखते हुए सोमवार को रैणी के कुछ ग्रामीण जोशीमठ तो कुछ आसपास के गांवों में अपने रिश्तेदारों के घर चले गए। जो अभी गांव में ही हैं, वे फिलहाल जंगल में ही रात बिताएंगे। ग्रामीणों का कहना है कि रात के समय पत्थर गिरने का खतरा बना हुआ है। संपर्क मार्ग टूटने से गांव में राशन का संकट भी खड़ा हो सकता है।

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