देहरादून। संवाददाता। सब्सिडी का लाभ सीधा गरीब व जरूरतमंद लोगों तक पहंुचे, कोई बिचैलिया उस पर हाथ साफ न कर पाये यही सोच कर देश में डायरेक्ट कैश सब्सिडी बैंक खातों में भेजने की व्यवस्था की गयी थी लेकिन इसके बावजूद भी इस सब्सिडी का सही उपयोग नहीं हो पा रहा है। सब्सिडी का पैसा तो लोगों के खाते में पहुंच रहा है लेकिन उपभोक्ता इस सब्सिडी का उपयोग अन्य जरूरतों को पूरा करने में कर रहे है।
मामला शिक्षा विभाग से संबन्धित है जहंा स्कूली बच्चों को सरकार द्वारा किताबें व डै्रस का पैसा बच्चों के अभिभावकों के खाते में डाला जा रहा था लेकिन जब इस पैसे के उपयोग की जांच की गयी तो पता चला कि 60 फीसदी बच्चे स्कूल बिना डै्रस के ही आ रहे है तथा उनके पास किताबें भी नहीं है। इन बच्चों के अभिभावकों के खाते में सरकार ने 600 रूपये डै्रस व 200 रूपये किताब खरीदने के लिए भेजे जा चुके है। फिर भी इन बच्चों के पास न तो किताबें है और न ही डै्रस बनवाई गयी है।
यहंा यह भी उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा सूबे के इन छह लाख 19 हजार बच्चों को हर साल 36 करोड़ 95 लाख रूपया दिया जा रहा है इसके बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। इस बाबत अधिकांश अभिभावकों का कहना है कि पैसा तो आया था लेकिन यह पैसा उन्होने दूसरी जरूरतों पर खर्च कर दिया है। जिस कारण न तो बच्चों को किताबें मिल सकी है न ही डै्रस बनायी जा सकी है।
ऐसे में यह स्वाभाविक सवाल है कि क्या माता पिता बच्चों को स्कूल सिर्फ मिड डे मील के लिए ही भेज रहे है उनकी पढ़ाई के प्रति उनकी कोई रूचि नहीं है जब माता पिता ही बच्चों का हक मार रहे है तो सरकार को चाहिए कि वह इस डायरेक्ट कैश सब्सिडी योजना को ही बंद करे व पहले की तरह खुद ही बच्चों को किताबें व डै्रस उपलब्ध कराये जिससे उनकी शिक्षा का उद्देश्य पूरा हो सके।