अलग राज्य मिला पर राज्य आंदोलनकारी शहीदों के सपने आज भी अधूरे

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देहरादून।  उत्तराखंड राज्य मिला पर राज्य बनने के 20 साल बाद भी शहीदों और आंदोलनकारियों के सपने अधूरे हैं। राज्य आंदोलनकारी बताते हैं कि अलग राज्य बनने के बाद पहाड़ की राजधानी पहाड़ में होगी, रोजगार मिलेगा, पलायन रुकेगा, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य की कल्पना पूरी होगी। इसके लिए युवाओं ने अपनी शहादत दी, लेकिन आज भी समस्याएं जस की तस हैं। प्रदेश की स्थायी राजधानी तक तय नहीं हो पायी है न ही मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को सजा मिली। जिससे शहीदों परिजन और आंदोलनकारी आहत हैं। 

उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी के बताते हैं कि राज्य आंदोलनकारियों एवं शहीदों का सपना था कि राज्य बनेगा तो हम सरकार के नजदीक होंगे, इससे हमारी सभी समस्याएं दूर होंगी, शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति सुधरेगी, 85 फीसदी पहाड़ी भू-भाग वाले राज्य की राजधानी पहाड़ में होगी, युवाओं को रोजगार मिलेगा, पलायन रुकेगा, लेकिन प्रदेश में हजारों स्कूल बंद हो गए। जबकि स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है।

आंदोलनकारियों एवं शहीदों के सपने, सपने बनकर रह गए हैं। जिससे आंदोलनकारी यह महसूस कर रहे हैं कि उन्होंने राज्य बनाकर कहीं गलत तो नहीं किया। उत्तराखंड महिला मंच की संयोजक निर्मला बिष्ट के मुताबिक दो अक्तूबर के दिन को महिला मंच काला दिवस के रूप में मनाता है। इस दिन रामपुर मुजफ्फरनगर में जो कुछ हुआ उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। इस दिन शांतिपूर्वक तरीके से दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों पर लाठी, डंडे बरसाए गए, गोलियां चलाई गई।

शहीद परिजनों और आंदोलनकारियों को है न्याय की आस 
निर्मला बिष्ट ने कहा कि उस दौरान महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़ किया गया। उन्होंने कहा कि जल, जंगल, जमीन पर हमारा अधिकार होगा, शराब बंद होगी आदि कई सपनों को लेकर आंदोलनकारियों ने अलग राज्य की मांग की। खासकर महिलाओं के इस संघर्ष की बदौलत राज्य तो मिला, लेकिन शहीदों और आंदोलनकारियों के सपने आज भी अधूरे हैं।

उन्होंने कहा कि इससे बड़ी हैरानी की बात क्या होगी कि राज्य गठन के 20 साल बाद भी उत्तर प्रदेश से परिसंपत्तियों का बंटवारा नहीं हो पाया है। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच के जिलाध्यक्ष प्रदीप कुकरेेती और राज्य आंदोलनकारी मंच के महासचिव रामलाल खंडूरी बताते हैं कि प्रदेश में नौकरियों के नाम पर युवाओं को आउटसोर्सिंग एजेंसी के माध्यम से रखा जा रहा है। जबकि मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को आज तक सजा नहीं मिल पायी है। 

राज्य आंदोलनकारी और शहीदों के परिजन मुजफ्फरनगर कांड के वर्षों बाद भी न्याय की आस लगाए हैं। लॉयर्स फोरम के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता रमन शाह के मुताबिक मुजफ्फरनगर कांड से जुड़े मामले की सुनवाई मुफ्फरनगर और लखनऊ न्यायालय में विचाराधीन है। हमें उम्मीद है कि हमें न्याय मिलेगा। यह उत्तराखंड की अस्मिता से जुड़ा मामला है। महिलाओं और शहीद परिजनों को न्याय मिलेगा।

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