देहरादून। उत्तराखंड में प्रमोशन में आरक्षण के मामले में लंबी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट आज अपना फैसला सुना सकता है। प्रदेश के हजारों कर्मचारियों की निगाहें कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं। सुप्रीम कार्ट ने 15 जनवरी को इस मामले में सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। प्रमोशन में आरक्षण और उसके विरोध में अदालती लड़ाई लड़ रहे कर्मचारी संगठन अपने अपने हक में फैसला आने की उम्मीद कर रहे हैं।
उत्तराखंड ओबीसी जनरल इंप्लाइज एसोसिएशन के अध्यक्ष दीप जोशी का कहना है कि न्यायालय में सरकार ने अपना रुख पूरी तरह से साफ कर दिया कि वह प्रमोशन में आरक्षण देने के पक्ष में नहीं है। सरकार की ओर से अदालत में सरकार का तर्क था कि वह प्रमोशन में आरक्षण नहीं देना चाहती, इसलिए उसे आंकड़े जुटाने की आवश्यकता नहीं है।
प्रमोशन में आरक्षण के मसले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद उसे लागू करना प्रदेश सरकार की बाध्यता हो जाएगी। नैनीताल उच्च न्यायालय ने एक अप्रैल 2019 को प्रमोशन में आरक्षण पर रोक लगाने वाले आदेश को निरस्त कर दिया था। इस मामले में प्रदेश सरकार भी पक्ष है। सरकार ने हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ एसएलपी दाखिल की थी। सरकार की ओर से मशहूर वकील मुकूल रोहतगी ने पैरवी की। एससी एसटी इंप्लाइज की ओर से कपिल सिब्बल ने पैरवी की थी। सरकार का कहना था कि आरक्षण देना है या नहीं यह सरकार का विषय है। इसमे कोर्ट को सरकार को निर्देश नहीं दे सकता है।
कई हीने से प्रमोशन लटके
उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद उत्तराखंड एससी एसटी इम्प्लाइज फेडरेशन ने 2006 की अधिसूचना के तहत प्रमोशन में आरक्षण लागू करने की मांग उठाई। प्रदेश सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले के बाद डीपीसी और पदोन्नतियों पर तत्काल रोक लगा दी। करीब कई महीने से प्रदेश में प्रमोशन नहीं हुए हैं। सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की है। उसका कहना है कि प्रमोशन में आरक्षण के बारे में फैसला करने का अधिकार प्रदेश सरकार का है।