देहरादून। दो महीने बाद उत्तराखंड की भाजपा सरकार तीन साल पूरे कर लेगी। तीन साल गुजरते ही प्रदेश की सियासी चैसर पर चालें भी बदलनी शुरू हो जाएंगी। सरकार चुनावी गियर दबाएगी और संगठन स्टीयरिंग संभालेगा। मगर इससे पहले संगठन को कप्तान चुनना है। नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर पैदा हुए सियासी विवाद के चलते नये कप्तान का चुनाव फिलहाल लटका है।
लेकिन 15 जनवरी को सीएए को लेकर पार्टी का कार्यक्रम समाप्त होने के बाद केंद्रीय नेतृत्व कभी भी चुनाव की घोषणा कर सकता है। यानी नये साल के पहले ही महीने में भाजपा को नया प्रदेश अध्यक्ष मिल जाएगा। नये कप्तान के नेतृत्व में नई टीम के सामने अगले दो साल अवसर और चुनौती दोनों लेकर आएंगे।
बहरहाल, संगठन के स्तर पर नई टीम के चयन आधे से अधिक कार्य पूरा हो गया है। ब्लाक और जिला अध्यक्षों का चुनाव हो चुका है और 15 जनवरी के बाद वे अपनी अपनी टीमों की घोषणा भी कर देंगे। संगठन की शेष टीम प्रदेश अध्यक्ष और उनकी कार्यकारिणी के गठन के साथ पूरी हो जाएगी। माना जा रहा है कि प्रदेश सरकार के ठीक तीन साल पूरा होने से पहले नया कप्तान और उसकी नई टीम सियासी मैदान में उतरने को तैयार होगी।
बढ़ेंगे हमले, संगठन बनेगा ढाल
भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रमुख डॉ. देवेंद्र भसीन कहते हैं,‘ भाजपा अपने सांगठनिक नेटवर्क और अनुशासन के लिए जानी जाती है। 2022 के विधानसभा चुनाव में संगठन का नये नेतृत्व बहुत भूमिका होगी। हालांकि चुनाव अभी दूर हैं, लेकिन तैयारी को लेकर भाजपा की गतिविधियां सदैव चलती रहती है।’
संगठन के सामने पार्टी की सरकार के पक्ष में माहौल बनाने की सबसे बड़ी चुनौती है। केंद्रीय योजनाओं और कार्यक्रमों के अलावा तीन साल में प्रदेश सरकार ने अपने स्तर पर कई कल्याणकारी योजनाएं बनाई हैं। इन योजनाओं को पात्रों तक पहुंचाने का काम जहां सरकार को करना है, वहीं इन योजनाओं के प्रचार की जिम्मेदारी संगठन के कंधों पर है। तीन साल पूरे होते ही सरकार पर कांग्रेस और विरोधी दलों के हमले तेज होने तय हैं। इन हमलों के खिलाफ संगठन को ही सरकार की ढाल बनना पड़ेगा।
अवसर लेकर आएंगे चुनाव
भाजपा के नये कप्तान और उनकी टीम का कार्यकाल नया अवसर लेकर आएगा। विधानसभा चुनाव में टिकटों के आवंटन से लेकर चुनावी रूप रेखा तय करने में संगठन की ही अहम भूमिका होगी।