देहरादून। उत्तराखंड सरकार एक बार फिर खनन नीति में बदलाव की तैयारी कर रही है। इसके तहत नदी में खनन के लिए खोदाई की सीमा बढ़ाने व स्टोन क्रशर की नदी तट से तय दूरी कम करने समेत निजी नाप पट्टों को लेकर भी कुछ संशोधन किए जा सकते हैं। खनन के लिए तय लक्ष्य के सापेक्ष कम राजस्व मिलने के कारण यह कदम उठाया जा रहा है।
प्रदेश में खनन राजस्व का एक बड़ा स्रोत है। खनन से प्रदेश को हर साल 400 से 500 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। हालांकि कोरोना के बाद हालात बदले हैं। वर्ष 2020-21 में जहां सरकार को खनन से 506 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था, वहीं 2021-22 में विभाग फिलहाल इस लक्ष्य से कोसों दूर है। प्रदेश में बरसात के दौरान, यानी जुलाई व अगस्त में खनन बंद रहता है। एक सितंबर से खनन की दोबारा शुरुआत होती है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के आंकड़ों पर नजर डालें तो सरकार ने खनन के लिए 750 करोड़ रुपये का लक्ष्य तय किया हुआ है।
वहीं, इसके सापेक्ष सरकार को जुलाई तक कुल 105 करोड़ रुपये ही राजस्व के रूप में प्राप्त हुए हैं। अब वित्तीय वर्ष समाप्त होने में कुल छह माह का समय शेष है और राजस्व वसूली निर्धारित राजस्व का मात्र 14 प्रतिशत है। जाहिर है कि इस रफ्तार से विभाग राजस्व लक्ष्य को प्राप्त करने की स्थिति में नजर नहीं आ रहा है। यही कारण है कि सरकार ने अब खनन विभाग के ढांचे में बदलाव करते हुए इसमें महानिदेशक का नया पद सृजित किया है, जिसका जिम्मा आइएएस स्तर के अधिकारी को सौंपा गया है।
इसके साथ ही सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिए खनन नीति में बदलाव करने के निर्देश दिए हैं। इस पर अभी निदेशालय स्तर से प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो इसमें पट्टाधारकों और स्टोन क्रशर मालिकों को राहत देने के लिए मानकों में ढील देने की तैयारी चल रही है। इसी के तहत नदियों में खनन की खोदाई की सीमा को बढ़ाने और और नदी तट से स्टोन क्रशर की सीमा कम करने पर काम किया जा रहा है।