ऋषिकेश। विख्यात सूफी गायक पद्मश्री कैलाश खेर ने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती से भेंट कर विभिन्न विषयों पर चर्चा की। उन्होंने मुंबई और परमार्थ निकेतन में ‘कैलाश खेर एकेडमी फार लर्निग आर्ट’ खोलने के विषय में विशद चर्चा की। इस अवसर पर शास्त्रीय गायक पद्मश्री प्रहलाद टिपन्या भी उपस्थित थे।
परमार्थ निकेतन प्रवास पर पहुंचे सूफी गायक कैलाश खेर ने गंगा आरती में शिरकत की। इस दौरान उन्होंने अपनी रूहानी आवाज में सूफी संगीत और संत कबीरदास रचनाएं गायी, दोनों गायकों की जुगलबंदी अद्भुत थी।
इस दौरान अपने अनुभव तथा भविष्य की योजना साझा करते हुए सूफी गायक कैलाश खेर ने कहा कि परमार्थ निकेतन में मैं भी एक ऋषिकुमार था। मेरा तो स्वभाव ही अभाव से निर्मित हुआ।
इसी को देखते हुए स्वामी चिदानंद के आशीर्वाद से यहां पर ‘कैलाश खेर एकेडमी फार लर्निग आर्ट’ (कला धाम) खोलने जा रहे हैं। पृथ्वी पर बहुत सी धर्मशाला और भवन है अब वैचारिक समन्वय केंद्र (वैचारिक मंदिर) खोलने की जरूरत है, ताकि परिवारों में सामंजस्य स्थापित हो।
उन्होंने बताया कि मुंबई में ‘सागर आर्ट’ प्रकल्प खोला जाएगा तथा गंगा तट परमार्थ निकेतन में कला धाम वैचारिक मंदिर की स्थापना की जाएगी, जिसमें संगीत के साथ वेद मंत्रों का उच्चारण, अध्यात्म क्या है? भावी पीढ़ी को संस्कारों सें सिंचित कैसे करें? तथा यहां पर बच्चों की काउंसलिंग की जाएगी। बच्चे जीवन जीना और जीवन में शांति का समावेश कैसे हो इन सब का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
इन केंद्रों में संगीत और अध्यात्म का साथ-साथ प्रशिक्षण दिया जाएगा। मुंबई और परमार्थ निकेतन के पश्चात कला मंदिर की शाखाएं विश्व के अन्य देशों में भी खोलने की योजना बनाई जा रही है।
उन्होंने कहा कि अब देश को मीनारों, दीवारों और इमारतों की जरूरत नहीं है। हमें तो हृदय परिर्वतन करने वाले केंद्रों की जरूरत हैं। बच्चों और युवाओं को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि बच्चों के अंदर जो कलाएं हैं, उन्हें निखारने में मदद करें, न कि उन पर परीक्षा में 99 प्रतिशत लाने के लिए दबाव बनाएं।
माता-पिता अपने ख्वाब को अपने बच्चों पर न थोपें, बल्कि बच्चों को अपने वेग के साथ आगे बढ़ने दें। हर बच्चा निर्विघ्न, निर्विकल्प और चैतन्य रूप है। हर बच्चा एक विशेष हुनर के साथ पैदा होता है, उनके हुनर को तराशे और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें।
उन्होंने युवा पीढ़ी को अपने कर्तव्यों का पालन करने का संदेश देते हुए कहा कि निज को खोजना और जानना ही हमारा सबसे प्रथम कर्तव्य है।
इस अवसर परस्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कैलाश खेर और प्रहलाद टिपन्या का रूद्राक्ष का पौधा देकर अभिनन्दन किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि कैलाश खेर का स्वभाव, प्रभाव और प्रभुभाव अद्भुत है।