ऐसे तो बेरोजगारों काे नहीं मिल पाएगी नौकरी,एक भर्ती पूरी होने में जानिए औसतन कितने लग जाते हैं साल

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उत्तराखंड में एक तो सरकारी नौकरियां पहले ही कम निकलती है, उस पर प्रक्रिया शुरू भी होती है तो उसे पूरा होने में सालों लग जाता है। नकल, पदों की संख्या घटाने या कानूनी पचड़े के कारण भर्ती प्रक्रिया कई सालों तक लटकी रहती हैं। भर्ती में देरी के दो उदाहरण वन विभाग में फॉरेस्टगार्ड और यूपीसीएल, पिटकुल में जेई भर्ती का है। फॉरेस्टगार्ड भर्ती मई 2018 में शुरू हुई थी, लेकिन नकल के आरोप के कारण परीक्षा परिणाम करीब एक साल लटका रहा। आलम यह है कि अब तीन साल बाद तक फॉरेस्टगार्ड का अंतिम चयन नहीं हो पाया है। इसी तरह ऊर्जा निगमों में जेई भर्ती के लिए 2016 में विज्ञप्ति जारी की गई। उक्त परीक्षा एक बार नकल के आरोप में निरस्त की गई, दुबारा परीक्षा सम्पन्न हुई तो इस बीच दोनों निगमों ने मूल विज्ञापन में बताए गए पद घटा दिए। इस कारण बेरोजगारों पर इस मामले में दोहरी मार पड़ी। भर्ती प्रक्रिया में देरी के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने वाले राज्य आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान के मुताबिक राज्य में औसत भर्ती में तीन साल से अधिक का समय लग रहा है। इतनी देरी बेरोजगारों के साथ सरासर अन्याय है।

चिकित्सा चयन बोर्ड ने पेश किया उदाहरण:

 राज्य में जहां परीक्षा एजेंसियों के पास भर्तियों का बैकलॉग बढ़ता जा रहा है, वहीं चिकित्सा चयन बोर्ड कोविड काल में अब तक दो बार में 1300 डॉक्टरों की भर्ती कर चुका है। इसके अलावा दून मेडिकल कॉलेज के लिए प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के नियमित और संविदा के करीब 200 पदों पर इस दौरान भर्ती की गई। आयोग ने फार्मासिस्ट के बैकलॉग श्रेणी में भी पचास के करीब पदों पर इस दौरान भर्ती की है। साथ ही नर्सेज के संविदा पदों भी साक्षात्कार आयोजित किए गए।

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