कमजोर बूथों पर भाजपा का फोकस, इन्हें मजबूत करने के लिए जानिए क्या है पार्टी की रणनीति

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विधानसभा चुनाव में जीत के लिए ‘बूथ जीता-चुनाव जीता’ के मूलमंत्र पर आगे बढ़ रही भाजपा ने इस बार अपनी रणनीति में कुछ बदलाव किया है। यूं कहें कि बदली परिस्थितियों में भाजपा कोई जोखिम उठाने के मूड में नहीं है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। चुनाव के दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण पोलिंग बूथ स्तर पर पार्टी को अधिक सशक्त बनाने की उसकी मुहिम इसी कड़ी का हिस्सा है। प्रदेश के सभी 11647 बूथों को पार्टी चार श्रेणियों में विभक्त करने में जुटी है। फिर श्रेणीकरण के आधार पर बूथ स्तर की रणनीति धरातल पर उतारी जाएगी।

प्रदेश में चुनावी दृष्टि से वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से विजय रथ पर सवार भाजपा का परचम फहराने में बूथ जीता-चुनाव जीता के मंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसीलिए पार्टी का सबसे अधिक ध्यान बूथ स्तर पर रहता है। आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी अपनी इस मुहिम में जुटी हुई है। वैसे भी यह चुनाव भाजपा के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं हैं। पिछली बार उसे विधानसभा की 70 में से 57 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। अब वह मिथक तोड़ने के लक्ष्य को लेकर भी आगे बढ़ रही है। राज्य में अब तक हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम बताते हैं कि हर पांच साल में यहां सत्ता बदल जाती है।

यही वजह है कि भाजपा ने इस बार बूथों को अधिक गंभीरता से लिया है। बूथ स्तर पर पार्टी अपनी इकाइयां गठित कर चुकी है तो प्रत्येक बूथ इकाइयों के कार्यकर्त्ताओं को पन्ना प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी जा चुकी है। साथ ही बूथ स्तरीय टोलियों को पार्टी की रीति-नीति के साथ ही राज्य और केंद्र सरकारों की उपलब्धियों की हर छोटी- बड़ी जानकारी से लैस किया जा रहा है। पार्टी अब अपनी बूथ स्तर की रणनीति में भी बदलाव करने जा रही है। इसके अंतर्गत अब तक के विधानसभा चुनावों के आधार पर बूथों के श्रेणीकरण का कार्य चल रहा है, ताकि कहीं कोई चूक न रहे। श्रेणीकरण के बाद कमजोर बूथों को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

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