कमलप्रीत ने भरी सफलता की उड़ान,घर पर शुरू किया एलईडी बल्‍ब बनाने का कार्य, आज वार्षिक टर्नओवर 22 लाख

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देहरादून: जिद, जुनून और जज्बा अगर आप में है तो कुछ भी असंभव नहीं है। इसी सोच के साथ देहरादून निवासी कमलप्रीत कौर ने अपने सपनों को पंख लगा सफलता की उड़ान भरी। वर्ष 2016 में अकेले ही घर से एलईडी बल्ब बनाना शुरू किया और आज बड़ा नेटवर्क खड़ा कर दिया। उनके साथ कई महिलाओं ने जुड़कर खुद को आत्मनिर्भर बनाया है। कमलप्रीत अब तक तीन हजार से अधिक महिलाओं और युवतियों को प्रशिक्षण दे चुकीं हैं। खास बात यह है कि सुद्धोवाला जेल में 20 कैदी भी उनके मार्गदर्शन में बल्ब बनाना सीख रहे हैं। इसके लिए कमलप्रीत हर सप्ताह जेल में प्रशिक्षण देती हैं।

पटेलनगर निवासी कमलप्रीत कौर ने वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत लोन लिया और कच्चा माल लाकर घर पर ही एलईडी बल्ब बनाने का कारोबार शुरू किया। शुरुआत में चार महिलाओं को साथ रखा। धीरे-धीरे मेहनत रंग लाई और ‘औरा इनफिनी’ नाम से कंपनी बनाई। इसके बाद काम बढ़ा तो सेलाकुई के लांघा में ‘औरा’ नाम से छोटी सी फैक्ट्री खोल दी। इसके बाद काम आगे बढ़ा और महिलाओं, स्कूल, आश्रम में प्रशिक्षण दिया।

आज वार्षिक टर्नओवर 22 लाख से अधिक

कमलप्रीत कौर ने बताया कि बीकाम करने के बाद घरवाले चाहते थे कि वह नौकरी करें, लेकिन शुरू से ही वह स्वरोजगार करना चाहती थीं। कमलप्रीत बताती हैं कि जब उन्होंने काम शुरू किया तो तब उनके पास एक भी रुपया नहीं था। लेकिन खुद मेहनत की और पति राजवीर का पूरा साथ मिलने से उनकी मेहनत रंग लाने लगी। इसका नतीजा है कि कंपनी का आज वार्षिक टर्नओवर 22 लाख से अधिक है। उनकी कंपनी के देहरादून के अलावा चमोली, गोपेश्वर, हल्द्वानी के साथ ही जयपुर में भी डीलर हैं।

आगे बढऩे के लिए जरूरी है आत्मविश्वास

कमलप्रीत बतातीं हैं कि किसी भी कार्य करने के लिए आत्मविश्वास होना जरूरी है। आत्मविश्वास से भरे रहोगे तो मेहनत के बूते कठिन लगने वाला कार्य भी आसान लगने लगता है और आप ऊंचाई को छू लेते हो। महिलाओं के लिए खास बात यह है कि उनके बाहर काम करने से जिंदगी का नजरिया भी बदल जाता है।

नारी निकेतन में संवासिनियों को दिया प्रशिक्षण

बीते फरवरी में कमलप्रीत कौर ने दून यूनिवर्सिटी रोड स्थित नारी निकेतन में संवासिनियों को एलईडी और सिलाई का प्रशिक्षण भी दिया। एक माह तक चलने वाले इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य संवासनियों को आत्मनिर्भर बनाना था। प्रशिक्षण में संवासिनियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

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