नैनीताल। सर्च इंजन गूगल ने अपने कीबोर्ड में कुमाऊंनी व गढ़वाली भाषा को भी समाहित कर लिया है। इससे मोबाइल पर कुमाऊंनी व गढ़वाली शब्दों की टाइपिंग करना आसान हो जाएगा। अभी तक दोनों लोक भाषाओं के लिए हिंदी के शब्दों का ही प्रयोग होता आया है। गूगल की पहल से उत्तराखंड की बड़ी आबादी की लोक भाषा को प्रसारित करने में मदद मिलेगी। नई पीढ़ी में मातृ भाषा के प्रति लगाव भी बढ़ेगा।
कुमाऊंनी व गढ़वाली उत्तराखंड सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। भले दोनों को लिपिबद्ध नहीं किया जा सका है, लेकिन कुमाऊंनी व गढ़वाली में कई पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन होता रहा है। कंप्यूटर में कुमाऊंनी व गढ़वाली को लिखना आसान है, लेकिन मोबाइल में इसे टाइप करना बहुत मुश्किल था। गूगल ने इसे सहज बना दिया है। गूगल ने अपने इंडिक कीबोर्ड को अपडेट कर दिया है। इसकी वजह से मोबाइल में इंग्लिश रोमन वर्ड टाइप करते हुए कुमाऊंनी व गढ़वाली शब्दों को आसानी से लिखा जा सकता है। जानकारों का कहना है कि इससे युवाओं व साहित्य प्रेमियों में मोबाइल के माध्यम से अपनी मातृ भाषा में लेखन करने में सहजता होगी।
मोबाइल में साहित्य रचना सहज होगा
युवा लेखक व कवि राजेंद्र ढैला कुमाऊंनी लेखन में रुचि रखते हैं। कुमाऊंनी साहित्यकारों, लेखकों व कलाप्रेमियों के साक्षात्कार की लंबी सीमित पेश की। कुमाऊं में लिखे इस साक्षात्कारों को खूब सराहा गया। ढैला कहते हैं इससे मोबाइल से साहित्य रचने में आसानी होगी। एक दूसरे से अपनी भाषा में संवाद करना सहज होगा।
भाषा के प्रसार में मिलेगी मदद
रिटायर्ड शिक्षक व साहित्यकार जगदीश जोशी कहते हैं कि आज चीजें तेजी से बदल रही है। मोबाइल के जरिये कहीं पर बैठे बैठे लेखन करने का चलन बढ़ रहा है। मोबाइल में हिंदी, कुमाऊंनी में टाइपिंग का विकल्प मिलने से साहित्य प्रेमियों को बड़ी सहूलियत होगी। इससे भाषा के प्रसार में मदद मिलेगी।