सरकार के मुताबिक कोरोना संक्रमण के पहले दौर में करीब 3.27 लाख प्रवासी उत्तराखंड लौटे थे। इनमें से करीब 30 प्रतिशत हालात सुधरने पर राज्य से बाहर चले गए थे। इनकी संख्या करीब एक लाख आंकी जा रही है।कोरोना संक्रमण बढ़ने और कई राज्यों में लॉकडाउन के हालात बनने से प्रवासियों को लेकर एक बार फिर से सरकार की परीक्षा की घड़ी नजदीक आती दिख रही है। इस बार मोर्चा नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत संभालेंगे और उनका सामना कम से कम एक लाख प्रवासियों से हो सकता है।सरकार के मुताबिक, कोरोना संक्रमण के पहले दौर में करीब 3.27 लाख प्रवासी उत्तराखंड लौटे थे। इनमें से करीब 30 प्रतिशत हालात सुधरने पर राज्य से बाहर चले गए थे। इनकी संख्या करीब एक लाख आंकी जा रही है। इनकी वापसी की स्थिति में सरकार को अस्थायी क्वारंटीन सेंटरों से लेकर गांवों में कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए संसाधन जुटाने होंगे।
कोरोना संक्रमण के पहले दौर में सरकार ने प्रवासियों के पंजीकरण की व्यवस्था की थी। स्मार्ट सिटी की वेबसाइट पर इनसे पंजीकरण कराने के लिए कहा गया था। इसी आंकड़े का उपयोग पलायन आयोग और अधिकारियों ने प्रवासियों के लिए योजना बनाने में किया था। हालांकि 30 सितंबर तक ही यह आंकड़ा लिया गया और उसके बाद पंजीकरण की व्यवस्था समाप्त कर दी गई थी।
अब फिर शासन ने प्रवासियों को कोरोना परीक्षण की निगेटिव रिपोर्ट लाने और स्मार्ट सिटी की वेबसाइट पर पंजीकरण कराने को कहा है। इनकी जानकारी एकत्र होने में समय लगेेगा और तब तक सरकार को हालात के हिसाब से फैसले लेने होंगे।
सरकार की तैयारी का अंदाजा पलायन आयोग की स्थिति को देखकर भी लगाया जा सकता है। त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में पलायन आयोग को प्रवासियों के मामले में काम करने को कहा गया था। राज्यमंत्रियों, दर्जाधारियों और आयोगों के अध्यक्ष पद पर नामित लोगों से दायित्व वापस लेने के बाद पलायन आयोग को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। आयोग के अध्यक्ष रहे एसएस नेगी के मुताबिक अभी स्थिति साफ नहीं है। स्थिति साफ होने पर ही पलायन आयोग काम कर पाएगा।
कोविड के पहले दौर में मनरेगा को प्रवासियों ने हाथों हाथ लिया था। हाल यह था कि प्रदेश में मनरेगा में रिकार्ड लोगों ने पंजीकरण कराया था। वापस लौटने वालों के सामने एक बार फिर से मनरेगा की ही राह होगी।