भाजपा की ओर से दून की नौ सीटों पर उम्मीदवारों के नाम की घोषणा के बाद अब हर किसी की निगाहें डोईवाला सीट पर हैं। डोईवाला से मौजूदा विधायक व पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के चुनाव न लड़ने के एलान के बाद यह सीट और दिलचस्प हो गई है कि अब भाजपा यहां किस चेहरे को मैदान में उतारेगी। हालांकि, यह भी माना जा रहा है कि पार्टी जिस भी चेहरे पर दांव लगाएगी, उसमें त्रिवेंद्र की पसंद को तरजीह मिलेगी। बहरहाल, पार्टी पशोपेश में है और संभवत: कारण भी यही है कि पहली सूची में पार्टी ने यहां के उम्मीदवार का चयन फिलहाल प्रतीक्षा में रखा है।
डोईवाला सीट राज्य बनने के बाद से ही भाजपा का गढ़ रही है। यदि इस सीट का इतिहास देखें तो राज्य गठन के बाद 2002 और 2007 के विधानसभा चुनाव में त्रिवेंद्र सिंह रावत विजयी रहे। हालांकि, 2002 के चुनाव में उनकी जीत का अंतर 1536 वोटों का था, मगर 2007 के चुनाव में यह अंतर 14127 वोट का हो गया। 2012 के चुनाव में त्रिवेंद्र को पार्टी ने रायपुर सीट पर चुनाव लड़ाया, जबकि उनके बदले भाजपा ने डा. रमेश पोखरियाल निशंक को डोईवाला सीट पर उतारा। निशंक ने चुनाव जीतकर भाजपा की झोली में लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की।
वर्ष 2014 में निशंक के लोकसभा का चुनाव लड़ने के बाद खाली हुई डोईवाला सीट पर पार्टी ने फिर त्रिवेंद्र को मौका दिया, लेकिन वह कांग्रेस के उम्मीदवार हीरा सिंह बिष्ट से चुनाव हार गए। वर्ष 2017 में हुए चुनाव में त्रिवेंद्र ने यह सीट वापस पार्टी के खाते में ला दी।
त्रिवेंद्र मुख्यमंत्री बने और यह सीट अति खास श्रेणी में आ गई। अब त्रिवेंद्र ने 2022 में चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया है तो पार्टी इस असमंजस में है कि डोईवाला में किस चेहरे पर दांव खेला जाए। पार्टी के भीतर दुविधा भी है व सीट जीतने की चुनौती भी। ऐसे में सूबे से लेकर दिल्ली तक इस सीट पर मंथन चल रहा है। वहीं, पार्टी यहां कांग्रेस का स्टैंड भी देखना चाह रही है। दरअसल, फिलहाल कांग्रेस की ओर से हीरा सिंह बिष्ट यहां प्रचार कर रहे हैं, लेकिन चर्चा यह भी है कि अगर हरक सिंह रावत कांग्रेस में शामिल हो जाते हैं तो कांग्रेस उन्हें डोईवाला का रण लड़ा सकती है। यही वजह है कि भाजपा डोईवाला को लेकर किसी भी तरह की जल्दबाजी में नहीं फंसना चाहती।