जन स्वास्थ्य पर खर्च हो रहा जीएसडीपी का केवल 1.1 फीसदी

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हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड में जन स्वास्थ्य पर कुल राजस्व खर्च और सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का सबसे कम खर्च किया जा रहा है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के आंकड़ों का अध्ययन कर सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटी फाउंडेशन ने फैक्टशीट में यह खुलासा किया है। उत्तराखंड हिमालयी राज्यों में न सिर्फ प्रति व्यक्ति सबसे कम धनराशि जन स्वास्थ्य पर खर्च करता है। बल्कि अन्य राज्यों की तुलना में कुल राजस्व खर्च और जीएसडीपी का सबसे कम हिस्सा भी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च कर रहा है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर (असम को छोड़कर) सहित अन्य हिमालयी राज्यों की तुलना में उत्तराखंड स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करने में सबसे पीछे है। सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटी फाउंडेशन (एसडीसी) ने यह अध्ययन 2019-20 के भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट को आधार बनाकर किया गया। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2019-20 में उत्तराखंड ने जन स्वास्थ्य पर अपने कुल राजस्व खर्च का 6.8 प्रतिशत हिस्सा खर्च किया। जो हिमालयी राज्यों में सबसे कम है। जम्मू-कश्मीर ने इस दौरान अपने राजस्व खर्च का 7.7 प्रतिशत, पूर्वोत्तर राज्यों ने औसतन 7.5 प्रतिशत और पड़ोसी हिमाचल प्रदेश ने 7.6 प्रतिशत हिस्सा खर्च किया। वहीं, जीएसडीपी का भी सबसे कम 1.1 प्रतिशत खर्च किया। जबकि जम्मू-कश्मीर ने 2.9 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश ने 1.8 प्रतिशत और पूर्वोत्तर राज्यों ने 2.9 प्रतिशत हिस्सा खर्च किया।

एसडीसी के संस्थापक अनूप नौटियाल का कहना है कि रिजर्व बैंक के आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि जन स्वास्थ्य पर खर्च के मामले में राज्य पिछड़ रहा है। सरकार को अब जन स्वास्थ्य को पहली प्राथमिकता बनाने की आवश्यकता है। कोविड महामारी से जो चुनौतियां खड़ी हैं, उसके बाद यह मसला न सिर्फ सार्वजनिक चर्चा का विषय बन गया है। बल्कि यह भी स्पष्ट हो गया है कि जन स्वास्थ्य के ढांचे पर गुणात्मक तरीके से और ज्यादा खर्च करके इसे और मजबूत बनाने ही जरूरत है।

एसडीसी फाउंडेशन के रिसर्च एंड कम्युनिकेशंस हेड ऋषभ श्रीवास्तव ने बताया कि सरकार को इन आंकड़ों को करीब से देखना चाहिए और अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए विशेषज्ञों के साथ जुड़ना चाहिए। जन स्वास्थ्य में निरंतर ज्यादा खर्च करने वाले राज्य ही सुरक्षित और सतत विकास सुनिश्चित करने में बेहतर तरीके से सक्षम बन रहे हैं। आने वाले समय में उत्तराखंड में भी स्वास्थ्य सुधार की संभावनाएं हैं।

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