देहरादून। टाटा कंपनी से नए गियर बक्से और लिवर से साथ वापिस आईं रोडवेज की 15 बसें ट्रायल पर ही फेल होने के मामले में परिवहन मंत्रालय बड़ी कार्रवाई की तैयारी में है। परिवहन मंत्री यशपाल आर्य ने कहा कि इस परिस्थिति में टाटा की ये 150 बसें रोडवेज के बेड़े में शामिल नहीं हो सकती। अगर ट्रायल की रिपोर्ट निगेटिव मिली, तो सभी बसें टाटा को वापिस कर दी जाएंगी। बता दें कि एक रोज पहले भवाली डिपो की बस में गियर फंसने की शिकायत के बाद अब अल्मोड़ा डिपो की बस पहाड़ी मार्ग पर पहले गियर में भी चढ़ने में हांफ गयी। अभी 15 दिन के ट्रायल पर ही बसों का ये हाल देखकर परिवहन मंत्री यशपाल आर्य ने परिवहन अधिकारियों को पूरी रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए हैं।
मालूम हो कि, दिसंबर में टाटा की नई 150 बसों में गियर लिवर की गड़बड़ी के चलते सभी बसें टाटा को ठीक करने के लिए लौटा दी गईं थीं। अभी तीन दिन पहले गुरुवार को ही टाटा मोटर्स पंतनगर ने 15 बसों के गियर बक्से समेत लीवर बदलकर और दरवाजा सही कर ये बसें निगम को वापस की हैं। निगम अधिकारियों ने 15 दिन इन बसों का ट्रायल कर आगे की कार्रवाई करने की बात कही थी। इसी क्रम में शुक्रवार को दिल्ली जा रही भवाली डिपो की बस का बैक गियर फंस गया था। बस शनिवार को टाटा के पंतनगर प्लांट में भेजकर फिर ठीक कराई गई। इसी बीच रविवार को दिल्ली से अल्मोड़ा जा रही बस भी पहाड़ चढ़ने में फेल हो गयी। बस पहले गियर में जैसे-तैसे अल्मोड़ा पहुंची। चालक ने बताया कि बस, लोडेड ट्रक से भी धीमी गति में पहाड़ चढ़ पा रही।
वहीं, ट्रायल पर बसें फेल होने के मामले में रविवार को परिवहन मंत्री यशपाल आर्य ने कहा कि ट्रायल रिपोर्ट के आधार पर ही इन बसों को वापस लेने या ना लेने का फैसला होगा। अगर बसें खराब ही हैं तो इन्हें वापस लेने का सवाल ही नहीं बनता।
सवालों में रोडवेज की तकनीकी जांच टीम
राज्य परिवहन निगम में तीन माह पूर्व टाटा कंपनी से खरीदी गई 150 बसों को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। इन बसों के भविष्य पर सवाल तो उठ ही रहा, बड़ा सवाल ये है कि रोडवेज की तकनीकी जांच टीम ने आखिरकार टाटा के प्लांट में क्या आंख बंद कर जांच की? बसें टाटा के गोवा प्लांट से आईं और खराबी आने के बाद इनका गियर बक्सा कंपनी के पंतनगर प्लांट में बदला गया। इन दोनों ही प्लांट में बसों की डिलीवरी लेने से पहले रोडवेज की तकनीकी टीम ने बसों की जांच कर उन्हें हरी झंडी दी थी। उसके बावजूद बसें अपनी दो बार की परीक्षा में फेल हो गयी।
अक्टूबर में दीपावली से पहले मिली टाटा की बसों को 15 दिसंबर को सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट (सीआइआरटी) ने दोषपूर्ण बताते हुए इनका संचालन न करने की संस्तुति की थी। टीम ने बसों के गियर लीवर को खतरनाक माना और इससे हादसे का खतरा बताया था। परिवहन मंत्री यशपाल आर्य ने रिपोर्ट को गंभीरता से लेकर सभी बसें लौटाने के निर्देश दिए थे, लेकिन टाटा कंपनी ने बसों का गियर बक्सा बौर लिवर बदलने का हवाला देकर बसें अपने पंतनगर प्लांट में वापस मंगा ली। इन बसों में 125 बसों का संचालन हो रहा था, जबकि 25 बसें पंजीकरण ना होने की वजह से खड़ी थीं।
इन बसों के गियर लीवर न केवल मानक से ज्यादा लंबे पाए गए, बल्कि यह गुणवत्ता के स्तर पर भी फेल साबित हुए। सीआइआरटी की जांच में पाया गया कि बसों में ड्राइवर का केबिन छोटा है और गियर लीवर उसके बाहर निकला हुआ है। जांच में यह भी रहा कि गियर लीवर के मेन प्वाइंट के ठीक पीछे जो यात्री सीट दी गई है, वह खतरनाक है। यात्री का पांव गियर लीवर से टकरा सकता है और इससे हादसे का खतरा है। टीम की ओर से अपनी जांच रिपोर्ट रोडवेज प्रबंधन को सौंपी थी।
दरअसल, सीआईआरटी से जांच तब कराई गई थी, जब इन बसों में शुरुआत में ही गियर लिवर टूटने की शिकायतें आ रहीं थीं। गियर लीवर टूटने से अल्मोड़ा में एक बस खाई में गिरने से बच गई थी। इस दुर्घटना के तत्काल बाद 27 नवंबर को रोडवेज की ओर से इन बसों के संचालन पर रोक लगा दी थी। साथ ही टाटा कंपनी को होने वाले 37 करोड़ के भुगतान पर भी रोक लगा दी गई थी। इस दौरान सवाल उठे थे कि गोवा प्लांट में बसों को जांचने गयी रोडवेज की तकनीकी टीम ने इन बसों को पास कैसे किया था, लेकिन तब मामला दब गया।
इसके बाद जब टाटा ने पंतनगर प्लांट में पांच बसों में गियर बक्से और लिवर बदले तो जांच के लिए रोडवेज की तकनीकी टीम फिर जांच के लिए पंतनगर गयी। वहां बसों का ट्रायल लिया गया और फिर इन्हें ओके करार देकर अन्य बसों में गियर बक्से और लिवर बदलने की मंजूरी दे दी गयी। इसके बाद टाटा ने 15 बसों को ठीक कर शुक्रवार को रोडवेज को वापस किया। रोडवेज अधिकारियों ने इन बसों को अलग-अलग डिपो में संचालन के लिए भेज दिया। साथ ही कहा कि 15 दिन ट्रायल के बाद बाकी 135 बसों को लेने का फैसला लिया जाएगा। अब ट्रायल पर बसें तीन दिन में ही फेल हो गईं। ऐसे में सवाल उठ रहा कि तकनीकी टीम ने आखिर किस दबाव में बसों को ओके किया। फिलहाल, रोडवेज अधिकारी इस पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।
बसों का एवरेज हुआ बहुत कम
ठीक होकर आयी बसों का डीजल एवरेज काफी कम हो गया है। बताया जा रहा कि जो यूरो-3 श्रेणी की बसें 2016 में मिलीं थीं, इन नई यूरो-4 बसों का एवरेज उनसे भी कम है। जबकि, नई तकनीक में इनका एवरेज ज्यादा होना चाहिए था।