अब जबकि आगामी विधानसभा चुनाव की कभी भी घोषणा हो सकती है तो भाजपा ने दिलों में उतरकर वोटर को अपनी ओर खींचने की रणनीति पर तेजी से काम शुरू कर दिया है। इस कड़ी में चुनाव प्रचार के लिए तैयार हो रहे नारों व गीतों में गढ़वाली, कुमाऊंनी व जौनसारी बोलियों को अधिक महत्व दिया जाएगा। इसके अलावा पंजाबी गीत व नारे भी तैयार किए जाएंगे। इसके पीछे पार्टी की मंशा यही है कि क्षेत्रवार मतदाताओं तक उनकी बोली में ही अपनी बात पहुंचाई जा सके। साथ ही भाजपा संदेश देने का प्रयास भी करेगी कि वह उत्तराखंड की लोक विरासत के संरक्षण को लेकर अधिक सजग है।
चुनाव प्रचार में नारे और गीत अधिक रंग भरते हैं। यूं कहें कि अपने पक्ष में वातावरण बनाने और चुनाव अभियान को धार देने में ये महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। उस पर नारे और गीत जनता की अपनी बोली भाषा में हों तो सोने में सुहागा। ऐसे में उन तक बात को आसानी से पहुंचाया जा सकता है। भाजपा ने भी इस तथ्य को समझा और उसने चुनाव प्रचार में स्थानीय बोली-भाषाओं को अधिक महत्व देने का निर्णय लिया है। अब इसकी कसरत तेज कर दी गई है।
यद्यपि, बदली परिस्थितियों में चुनाव प्रचार के तौर-तरीके बदले हैं। इंटरनेट मीडिया के माध्यम से अधिकाधिक व्यक्तियों तक पहुंच बनाने के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन चुनाव में बैनर-पोस्टर के साथ ही नारों व गीतों का महत्व आज भी कम नहीं हुआ है। इसी के दृष्टिगत भाजपा ने पार्टी ने चुनाव प्रचार के लिए नारे व गीत तैयार करने को अपनी रिसर्च टीम लगाई हुई है।
पार्टी सूत्रों के अनुसार रिसर्च टीम इस बात पर अधिक फोकस कर रही है कि चुनाव के लिए गढ़वाली, कुमाऊंनी व जौनसारी बोलियों में ज्यादा से ज्यादा गीत एवं नारे तैयार किए जाएं। गीतों में पार्टी की रीति-नीति के साथ ही राज्य व केंद्र सरकार की उपलब्धियों और भविष्य के रोडमैप को समाहित किया जा रहा है। साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उत्तराखंड के प्रति लगाव को भी गीतों व नारों के माध्यम से प्रदर्शित किया जाएगा। तराई क्षेत्र में सिख बहुल क्षेत्रों के लिए पंजाबी गीत-नारे तैयार किए जा रहे हैं। आने वाले दिनों में स्थानीय बोली-भाषाओं में तैयार हो रहे ये गीत और नारे उत्तराखंड में गूंजते नजर आएंगे।