देहरादून। पद्मभूषण डा. अनिल प्रकाश जोशी (संस्थापक हेस्को) ने कहा कि प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि देश-दुनिया में प्रकृति एवं पर्यावरण का सबसे बड़ा प्रतीक हैं। चिपको आंदोलन जैसे मुद्दों को इस व्यक्ति ने वैश्विक पहचान दी और तब स्टाकहोम समिट में भी पर्यावरण संरक्षण का मसला प्रमुखता से उठा था। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी बहुगुणा का नदियों, वनों और प्रकृति से गहरा जुड़ाव था। वह हर वक्त समाज और पर्यावरण को लेकर चिंतन-मनन में जुटे रहते थे। मैंने गांधीजी को तो नहीं देखा, लेकिन सुंदरलाल बहुगुणा के माध्यम से गांधी को महसूस किया और देखा।
समाज और पर्यावरण के लिए समर्पित ऐसा व्यक्तित्व मैंने आज तक नहीं देखा। वह कहा करते थे कि सबसे बड़ी आर्थिकी तो पारिस्थितिकी है। मुझे लगता है कि इस पर हम आज तक अटके हुए हैं। हमने पर्यावरण मंत्रलय बनाकर इतिश्री कर दी है, जबकि प्रकृति का संरक्षण सबके दायित्व का विषय होना चाहिए। सभी को इस दिशा में सजग होना होगा। बहुगुणा से मैंने भी सादगी व सरलता की सीख ली है। तीन साल तक वह हेस्को में रहे। इस दौरान उनसे निरंतर तमाम मुद्दों पर बातचीत होती रही। शहीद दिवस पर भोजन नहीं करते थे। साथ ही उम्र के चौथे पड़ाव में भी उन्हें पिछली बातें याद आती थीं। मैंने कभी उनके साथ कार्य नहीं किया, मगर मेरा लालच था कि इस महान व्यक्तित्व का आशीर्वाद मुझे मिले। जब मैं कोटद्वार डिग्री कालेज में पढ़ाता था, तब से उनके संपर्क में रहा। प्रकृति को यदि समझना है, सीखना है तो बहुगुणा से बेहतर कोई व्यक्ति नहीं है। किसी भी विषय पर चर्चा के दौरान वह आखिर में प्रकृति व पर्यावरण पर आ जाते थे। वह अलग व्यक्तित्व के धनी थे। वह मेरे पिता तुल्य थे।