पहली बार इस्तेमाल होगी एम3 ईवीएम, 21 से शुरू होगा रिटर्निंग ऑफिसरों का प्रशिक्षण

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उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों में इस बार अत्याधुनिक और ज्यादा सुरक्षित एम3 ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल किया जाएगा। ये मशीनें बिहार से यहां पहुंच चुकी हैं। इसके साथ ही निर्वाचन विभाग ने चुनाव की तैयारियां तेज कर दी हैं।

उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव के लिए 18,400 बैलेट यूनिट 17,100 कंट्रोल यूनिट और 18,400 वीवीपैट पहुंच चुकी हैं। इस बार के चुनाव में जिन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल होगा, वे ईवीएम की थर्ड जेनरेशन यानी एम-3 (मार्क-3) होगी। इनका इस्तेमाल पिछले दिनों बिहार के विधानसभा चुनाव में किया गया था।

ईवीएम के पहले वर्जन एम-1 को चुनाव प्रक्रिया से पूरी तरह से बाहर किया जा चुका है। इसके बाद 2006 से 2010 के बीच बनी ईवीएम की दूसरी जेनरेशन एम-2 से पिछले विधानसभा चुनाव हुए थे। एम-2 में कुल 64 उम्मीदवारों की वोटिंग की जानकारी दर्ज की जा सकती थी।

एक बैलेटिंग यूनिट में 16 उम्मीदवार होते हैं। इससे ज्यादा उम्मीदवार होते हैं तो दूसरी यूनिट जोड़ दी जाती है। एम-2 से अधिकतम चार यूनिट यानी 64 उम्मीदवारों को ही जोड़ा सकता था। 2013 के बाद ईवीएम की तीसरी जेनरेशन एम-3 आई। इसमें 384 उम्मीदवारों की जानकारी जोड़ी जा सकती है। यानी एक साथ 24 बैलेटिंग यूनिटों को इससे जोड़ा जा सकता है।

क्यों खास है एम-3 ईवीएम
इसमें खुद की जांच करने का फीचर है। यानी यह मशीन खुद जांच करके बता देती है कि उसे सभी फंक्शन ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं। कोई भी दिक्कत होगी तो कंट्रोल यूनिट की स्क्रीन पर दिखेगी। इसमें डिजिटल सर्टिफिकेट का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें अगर कोई बाहर की मशीन या डिवाइस लगाने की कोशिश होगी तो यह पूरा सिस्टम बंद हो जाएगा। यह टैंपर्ड प्रूफ प्रक्रिया पर काम करती है। अगर मशीन से छेड़छाड़ की गई या किसी बटन को बार-बार दबाया गया तो वह सिग्नल दे देती है। मशीन को खोलने की कोशिश करोगे तो यह बंद हो जाती है। इसमें चिप को एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है। इसके सॉफ्टवेयर कोड को पढ़ नहीं सकते। इसे इंटरनेट या दूसरे नेटवर्क से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।

1982 में पहली बार इस्तेमाल हुई थी ईवीएम

1982 में पहली बार केरल के पारूर विधानसभा उपचुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था। लेकिन तब कोर्ट ने चुनाव को अमान्य करार दे दिया था। तब रिप्रेजेंटशन ऑफ द पीपल्स एक्ट 1951 में ईवीएम का प्रावधान नहीं था। 1988 में यह एक्ट संशोधित हुआ और 1989 से लागू हुआ। इसमें चुनाव आयोग को ईवीएम से चुनाव कराने की शक्ति दी गई।

आगामी विधानसभा चुनाव के लिए बिहार से एम-3 ईवीएम उत्तराखंड आ चुकी हैं। हम 21 से प्रशिक्षण शुरू करने जा रहे हैं। पहली बार यहां के चुनाव में एम-3 ईवीएम का इस्तेमाल किया जाएगा। इससे पहले पिथौरागढ़ और सल्ट विधानसभा उपचुनाव में इस ईवीएम का प्रयोग हो चुका है।
-सौजन्या, मुख्य निर्वाचन अधिकारी

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