नैनीताल। ग्लोबल वॉर्मिंग से बदल रहा मौसम चक्र का मानव के साथ ही वनस्पति व फल फूलों पर भी नजर आने लगा है। इस बार बारिश व बर्फबारी नहीं होने और सूरज की तपिश बढ़ने के बीच पहली बार मार्च पहले सप्ताह में उत्तराखंड का प्रसिद्ध काफल पकने के बाद बाजार में आ गया है। नैनीताल में 500 रुपये प्रतिकिलो काफल बिक रहा है।
पहाड़ में होने वाला काफल मुख्यतः ग्रीष्मकालीन फल माना जाता है। यह फल अप्रैल-मई में पकता है जबकि ऊंचाई वाले इलाकों में जून जुलाई तक पकता है। नैनीताल में करीब तीन दशक से काफल बेच रहे राजेंद्र पाल सिंह के अनुसार वह पहली बार इस बार मार्च में काफल बेच रहे हैं। यह फल रातिघाट क्षेत्र के जंगल में पके हैं। काफल को लेकर पहाड़ के लोकगीत भी हैं। प्रसिद्ध रंगकर्मी मोहन उप्रेती रचित बेडु पाको बार मासा, नरेन काफल पाको चेत मेरी छैला, आज भी हर पहाड़ के लोग गनगुनाते रहते हैं।
काफल खाने के फायदे
काफल रस-युक्त और पाचक जूस से भरा होता है। ये पेट से जुड़ी कई बीमारियों को ठीक करने में सहायक होता है। जैसे अतिसार, अल्सर, गैस,कब्ज, एसिडीटी आदि बीमारियों के लिए ये रामबाण फल है। मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के लिए काफल काम आता है, क्योंकि ये कई तरह के एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी डिप्रेशंट तत्वों से भरा होता है। इसके तने की छाल का सार, अदरक व दालचीनी का मिश्रण अस्थमा, डायरिया, बुखार, टाइफाइड, पेचिश तथा फेफड़े ग्रस्त बीमारियों के लिए अत्यधिक उपयोगी है। इसके पेड़ की छाल तथा अन्य औषधीय पौधों के मिश्रण से निर्मित काफलड़ी चूर्ण को अदरक के जूस व शहद के साथ मिलाकर उपयोग करने से गले की बीमारी, खांसी और अस्थमा जैसे रोगों से मुक्ति मिल जाती है।