उत्तराखंड रोडवेज में बसों के टायरों को रिट्रीड करने के लिए खरीदी जा रही रबर की गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे हैं। कर्मचारी नेताओं का कहना है कि पहाड़ी रूट पर इस रबर से रिट्रीड टायर दो सप्ताह में ही घिस जा रहे हैं। बसों के टायर बार-बार बदलने पड़ रहे हैं। बसों के नए टायर घिसने के बाद रोडवेज उन टायरों पर रबर चढ़ाकर रिट्रीड करता है। अधिकांश बसें रिट्रीड टायरों के भरोसे चल रही हैं। नियमानुसार रिट्रीड के बाद टायर पहाड़ी रूट पर 10 से 12 हजार किमी चलना चाहिए।
लेकिन वर्तमान में जिस रबर से टायरों को रिट्रीड किया जा रहा है, उससे 3500 से 4000 किमी चलने पर ही टायर घिस जा रहे हैं। अधिकांश बसों के टायर डेढ़ से दो सप्ताह के भीतर घिस रहे हैं। रोडवेज कर्मचारी संयुक्त परिषद के क्षेत्रीय अध्यक्ष मेजपाल सिंह का कहना है कि रबर की गुणवत्ता बहुत खराब है। टायर बहुत कम समय में घिस रहे हैं। टायर बदलने के लिए बसों को कार्यशाला भेजना पड़ता है। ऐसे में कई रूटों की बसें एक से तीन घंटे तक लेट हो जाती हैं।
अगले पहिये पर भी लगाए जा रहे हैं रिट्रीड टायर
पहाड़ी रूट की बसों पर आगे रिट्रीड टायर नहीं लगाए जा सकते। क्योंकि, इससे दुर्घटना का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन रोडवेज में नियमों को दरकिनार कर बसों के आगे भी रिट्रीड टायर लग रहे हैं। और तो और, आरटीओ से भी ऐसी बसों को फिटनेस प्रमाण मिल जाता है। किसी भी रूट पर ऐसी बसों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती।
नए टायरों की भारी किल्लत
रोडवेज में नए टायरों की भारी कमी बनी हुई है। पर्वतीय डिपो में 16 और ग्रामीण डिपो में 14 बसें टायरों के अभाव में खड़ी हैं। इस कारण कई रूटों पर बसें नहीं चल पा रही हैं, जिस कारण यात्रियों को परेशानी हो रही है। त्योहारी सीजन में बसों के टायर और पाट्र्स के अभाव में बसें खड़ी रहना रोडवेज के लिए भी घाटे का सौदा बन रहा है। रोडवेज में नए टायरों की
कमी बनी हुई है।
रबर की खरीद के लिए मुख्यालय स्तर से टेंडर होने थे, लेकिन अभी तक नहीं हुए। मुख्यालय की अनुमति पर बाजार से दूसरी कंपनी की रबर खरीदी जा रही है, लेकिन इसकी गुणवत्ता ठीक है। हमारे पास कम समय में टायर घिसने की शिकायत नहीं मिली है। यदि ऐसा है तो कर्मचारी या फोरमैन शिकायत कर सकते हैं। इसकी जांच करवाई जाएगी।
जेके शर्मा, मंडलीय प्रबंधक (तकनीकी), देहरादून