हल्द्वानी : गौला नदी में काम करने वाले मजदूरों को अब रजिस्ट्रेशन के नाम पर कोई पैसे नहीं देना होगा। अब तक यह नियम था कि नदी में काम करने को पहुंचे हर श्रमिक को वन निगम में पंजीकरण कराने के लिए फोटो और आधार कार्ड के साथ 250 रुपये की पर्ची भी कटानी पड़ती थी। जिसके बाद ही उन्हें कंबल और सेफ्टी किट मिलती थी। मगर अब इन मजदूरों को राहत मिल गई।
गौला में करीब साढ़े सात हजार श्रमिक काम करने पहुंचते थे। 250 रुपये के हिसाब से कुल शुल्क 18 लाख 75 हजार रुपये बनते हैं। शीशमहल से लेकर शांतिपुरी तक गौला के 13 निकासी गेटों पर वाहनों के अलावा घोड़ा-बुग्गियों से भी उपखनिज क्रशर और निजी स्टाक तक पहुंचाया जाता है। एक लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर नदी से रोजगार मिलता है। हर साल अक्टूबर की शुरूआत से श्रमिकों का नदी में पहुंचाना शुरू हो जाता है। दीवाली व छट का त्योहार बीतने पर संख्या तेजी से बढ़ती है। उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार तक से बड़ी संख्या में लोग काम के लिए आते हैं। जिसके बाद 31 मई तक बाहरी श्रमिकों का गौला किनारे डेरा रहता है। नदी किनारे बनी झुग्गियों के अलावा किराये के कमरों में इनका ठिकाना रहता है।
नियम के मुताबिक वन निगम हर साल गौला मजदूरों को कंबल, जलौनी लकड़ी, सेफ्टी उपकरण मुहैया कराने के साथ हेल्थ कैंप भी लगाता है। इसमें कंबल और अन्य सामान लेने के लिए रजिस्टे्रशन अनिवार्य होता है। पहले रजिस्ट्रेशन के नाम पर 250 रुपये प्रति व्यक्ति लिए जाते थे। मगर अब इस शुल्क पर पाबंदी लगा दी गई है।