जिलाधिकारी की ओर से पेश शपथपत्र में कहा गया है कि इनकी संख्या 12 के बजाय 10 है। रविशंकर की ओर से यह भी कहा गया है कि सन् 2014 में दिनेश चंद्र जोशी की ओर से दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट इस मामले में पहले ही निर्णय जारी कर चुका है। हाईकोर्ट के आदेश पर ग्रामीण विकास विभाग के परियोजना निदेशक अरविंद मोहन गर्ग के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत 2017 में मामला दर्ज किया गया था। मगर जांच में भ्रष्टाचार से संबंधित तथ्य नहीं पाए गए।
उन्होंने कहा कि यहां यह भी बता दें कि हरिद्वार निवासी सच्चिदानंद डबराल की ओर से इस मामले को हाल ही में जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गयी है। हरिद्वार के विधायक एवं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक, प्रदेश के मुख्य सचिव, जिलाधिकारी हरिद्वार और डीआरडीए को इस मामले में पक्षकार बनाया गया है। न्यायाधीश आर एस चौहान की अगुवाई वाली पीठ ने 24 जून को इस मामले की सुनवाई के बाद सरकार और जिलाधिकारी हरिद्वार को रिपोर्ट पेश करने को कहा था।
याचिकाकर्ता की ओर से दायर याचिका में 2006 से 2011 के बीच विधायक निधि से बनने वाले 12 लाइब्रेरी भवनों के निमार्ण में धांधली की ओर इशारा किया गया है। आरोप लगाया गया कि ग्रामीण विकास विभाग की ओर से इसमें अनियमिततायें बरती गई हैं। भूमि का हस्तांतरण नहीं किया गया और न ही भवनों को नगर निगम की ओर से अपने हाथ में लिया गया।
याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि सन् 2012 में लोकायुक्त की जांच में भी अनियमितता की पुष्टि हुई है जबकि हरिद्वार के तत्कालीन जिलाधिकारी आर मीनाक्षी सुंदरम की ओर कराई गई जांच में क्लीन चिट दे दी गई। याचिकाकर्ता की ओर से अदालत से इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की गई है। शपथपत्र में कहा गया है कि यह मामला कानून के रेस जूडिकाटा सिद्धांत के खिलाफ है और सुप्रीम कोर्ट की ओर से भी बलवंत सिंह चुफाल और अन्य बनाम राज्य मामले में ऐसे मामलों को हतोत्साहित करने की सिफारिश की गई है।
उन्होंने कहा कि यहां यह भी बता दें कि हरिद्वार निवासी सच्चिदानंद डबराल की ओर से इस मामले को हाल ही में जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गयी है। हरिद्वार के विधायक एवं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक, प्रदेश के मुख्य सचिव, जिलाधिकारी हरिद्वार और डीआरडीए को इस मामले में पक्षकार बनाया गया है। न्यायाधीश आर एस चौहान की अगुवाई वाली पीठ ने 24 जून को इस मामले की सुनवाई के बाद सरकार और जिलाधिकारी हरिद्वार को रिपोर्ट पेश करने को कहा था।
याचिकाकर्ता की ओर से दायर याचिका में 2006 से 2011 के बीच विधायक निधि से बनने वाले 12 लाइब्रेरी भवनों के निमार्ण में धांधली की ओर इशारा किया गया है। आरोप लगाया गया कि ग्रामीण विकास विभाग की ओर से इसमें अनियमिततायें बरती गई हैं। भूमि का हस्तांतरण नहीं किया गया और न ही भवनों को नगर निगम की ओर से अपने हाथ में लिया गया।
याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि सन् 2012 में लोकायुक्त की जांच में भी अनियमितता की पुष्टि हुई है जबकि हरिद्वार के तत्कालीन जिलाधिकारी आर मीनाक्षी सुंदरम की ओर कराई गई जांच में क्लीन चिट दे दी गई। याचिकाकर्ता की ओर से अदालत से इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की गई है। शपथपत्र में कहा गया है कि यह मामला कानून के रेस जूडिकाटा सिद्धांत के खिलाफ है और सुप्रीम कोर्ट की ओर से भी बलवंत सिंह चुफाल और अन्य बनाम राज्य मामले में ऐसे मामलों को हतोत्साहित करने की सिफारिश की गई है।