गंगा के मैदानी क्षेत्रों के अलावा यूरोपीय देशों से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पहुंच रहा ब्लैक कार्बन हिमालय की सेहत को बिगाड़ रहा है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों की ओर से किए गए शोध में यह बात सामने आई है कि गंगा के मैदानी इलाकों और यूरोपीय देशों से हर साल भारी मात्रा में ब्लैक कार्बन हिमालयी क्षेत्रों में पहुंच रहा है।
वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि हिमालयी क्षेत्रों में मौसम और ऊंचाई के हिसाब से ब्लैक कार्बन की मात्रा 0.01 से लेकर 4.62 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पाई गई है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि अप्रैल मई-जून में जहां उच्च हिमालीय क्षेत्रों में ब्लैक कार्बन की मात्रा में इजाफा हो जाता है। वहीं बारिश और बर्फबारी के दौरान ब्लैक कार्बन के हिमालीय क्षेत्रों में पहुंचने की मात्रा थोड़ी कम हो जाती है।
ब्लैक कार्बन से उत्पन्न हो रही कृत्रिम कर्मी, ग्लेशियरों के पिघलने में आई तेजी
वाडिया इंस्टीट्यूट के पूर्व वैज्ञानिक डॉक्टर पीएस नेगी द्वारा किए गए शोध में यह बात सामने आई है कि हिमालीय क्षेत्रों में तेजी से ब्लैक कार्बन की वजह से इन क्षेत्रों में कृत्रिम गर्मी पैदा हो रही है। जिसके चलते ग्लेशियरों के पिघलने में भी तेजी आई है। डॉ. नेगी के मुताबिक ब्लैक कार्बन सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को घोषित करने के साथ ही इंफ्रारेड किरणों के रूप में उत्सर्जित करता हैं। इसका सीधा असर हिमालीय क्षेत्रों में तापमान पर पड़ता है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में तापमान सामान्य से अधिक बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप ग्लेशियरों के पिघलने की दर भी बड़ी है जो अच्छा संकेत नहीं है।
गंगोत्री क्षेत्र के भोजभासा, चीड़वासा में स्थापित किए गए हैं मॉनिटरिंग स्टेशन
उच्च हिमालीय क्षेत्रों में साल दर साल पहुंच रहे ब्लैक कार्बन की मात्रा की मानीटरिंग के साथ ही ग्लेशियरों के पिघलने की दर की भी निगरानी की जा सके, इसके लिए वाडिया इंस्टीट्यूट की ओर से गंगोत्री क्षेत्र के भोजवासा और चीड़वासा में दो मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित किए गए हैं। यह पहली बार है जब किसी वैज्ञानिक संस्थान की ओर से इतनी ऊंचाई पर मॉनिटरिंग स्टेशन की स्थापना की गई है। यह वाडिया इंस्टीट्यूट की एक बड़ी उपलब्धि है।